दीपदान से मिलेगा हर मुश्किलों से छुटकारा

कार्तिक मास में सूर्य सर्वाधिक कमजोर होता है। इसके चलते ऊर्जा और प्रकाश दोनों ही कमजोर होते है। इस समय दीपक जलाकर हम ईश्वर, ऊर्जा और प्रकाश से सम्बन्ध स्थापित करते हैं। दीपक से ईश्वर की कृपा, उ$र्जा और समृद्धि सब कुछ मिल सकता है। यही वजह है कि काॢतक मास में किया गया दीपदान कभी भी निष्फल नहीं होता है।

मान्यता है कि इस माह में अलग अलग मुखी दीपक जलाकर अलग अलग तरह की मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं। वैसे भी यह महीना भगवान विष्णु का होता है और उन्हें प्रसन्न करना सबसे आसान होता है। माता लक्ष्मी की कृपा हासिल करना सबसे सहज होता है। ऐसे में अगर इन दोनों की कृपा मिल जाए तो जीवन में दुखों का नाश होना तो तय है ही मिल जाता है सुख-शांति, सम्मान, संतान और संपत्ति का वरदान। लेकिन यह सब तब हो पायेगा जब हम दीपदान करेंगे। ज्योतिषियों की मानें तो इस महीने में विधि विधान से की गयी पूजा से धर्म और धन दोनों का लाम मिलता है। तुलसी पूजन और दीपदान करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और अक्षय शुभ फल की प्राप्ति होती है। कीॢत, आयु, संपत्ति, ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति होती है।

कार्तिक मास  हदू धर्म में अत्यधिक पवित्र महीना माना जाता है। यह चातुर्मास का अंतिम मास है। इसी माह से देव तत्व मजबूत होता है। इसी महीने में तुलसी का रोपण और विवाह सर्वोत्तम होता है। जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है, ‘पौधों में मुझे तुलसी, मासों में काॢतक, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के अत्यंत निकट है। इसीलिए काॢतक मास में ईश्वरीय आराधना से सभी कुछ प्राप्त करने की व्यापक संभावनाएं होती हैं।

कहा जाता है कि जब शंखासुर वेदों को चुराकर समुद्र में ले गया तो भगवान विष्णु ने कहा था कि ‘आज से मंत्र-बीज और चारों वेद प्रतिवर्ष काॢतक मास में जल में विश्राम करेंगे। यही वजह है कि काॢतक स्नान को अक्षय फल प्रदाता कहा जाता है। इस मास में व्रत करने से कीॢत, तेज, आयु, संपत्ति, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। काॢतक मास में चंद्रमा अपनी किरणें सीधी पृथ्वी पर पड़ती है। चंद्रमा की किरणों से ऊर्जायित जल में स्नान से मनुष्य को लाभ मिलता है। इसीलिए शरद पूॢणमा को प्रात: स्नान करना और चंद्रमा की रोशनी में बने पदार्थों का सेवन करने का विधान है। इस मास में लक्ष्मीजी की कृपा पाने के लिए तन, मन व घरेलू वातावरण की स्वच्छता पर भी जोर दिया गया है। पद्मपुराण के अनुसार काॢतक माह में यक्षों की पूजा की जाती है।

इस समय देव, गंधर्व, ऋषि आदि गंगा स्नान के लिए आते हैं तथा पवित्र तीर्थों में निवास करते हैं। जहंा इस मास में स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए भगवान धन्वंतरी की आराधना की जाती है तो यम को संतुष्ट कर पूर्ण आयु का वरदान पाने का अवसर भी रहता है। इसी मास की अमावस्या को संपूर्ण संसार मां लक्ष्मी की पूजा कर धन-धान्य पाता है। इसी मास की एकादशी को विगत चार माह से निद्रा में लीन भगवान विष्णु जागृत हो जाते हैं और सभी आराधनाओं का शाश्वत फल प्रदान करते हैं।

इसी महीने में करीब चार महीनों के विश्राम के बाद देवउठनी एकादशी के दिन वे जागेंगे और एक बार फिर सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी अपने हाथों लेंगे। इस महीने दीपावली, धनतेरस, छठ, अहोई अष्टमी, रमा एकादशी, गौवत्स द्वादशी, रूप चर्तुदशी, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, सौभाग्य पंचमी, गोपाष्टमी, आंवला नवमी, देव एकादशी, बैकुंठ चर्तुदशी, कार्तिक मास पूॢणमा या देव दीपावली को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दौरान देव उठानी या प्रबोधिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के पश्चात उठते हैं। इस दिन के बाद से सारे मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। काॢतक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं जैसे उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नाति, देवकृपा आदि की प्राप्ति बहुत सहजता से हो जाती है। स्कंदपुराण में इस माह को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला कहा गया है। मान्यता है कि इस मास में हर नदी का जल गंगा के सदृश हो जाता है। कुछ लोग अपने घरों में ही सूर्योदय पूर्व स्नान करके भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। काॢतक मास का महत्व शैव, वैष्णव और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है।

इसी मास में भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्यावतार हुआ था। भगवान ने यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों तथा राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लिया था। इससे सृष्टि का निर्माण फिर से संभव हुआ। इस महीने में आचरण में पांच अनुशासन का पालन महत्वपूर्ण बताया गया है। इन अनुशासनों का पालन करने से जीवन में वास्तविक प्रगति की संभावनाएं बढ़ती हैं। दीपदान: काॢतक मास में कृष्ण पक्ष की रातें वर्ष की सबसे ज्यादा अंधकार वाली रातें होती हैं। भगवान विष्णु के जागने से पहले इन पंद्रह दिनों में प्रतिदिन दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को आलोकित कर सकें।

तुलसी पूजा: इस महीने में तुलसी की पूजा का भी विशेष महत्व है। भगवान विष्णु तुलसी के हृदय में शालिग्राम के रूप में निवास करते हैं। स्वास्थ्य को समॢपत इस मास में तुलसी पूजा व तुलसी दल का प्रसाद ग्रहण करने से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।

भूमि शयन: यह मास विलासिता और आराम से मुक्त होने का भी है। यही वजह है कि इस अवसर पर आरामदायक बिस्तर छोड़कर भूमि पर शयन का अनुशासन पालना चाहिए। इससे जहां स्वास्थ्य लाभ होता है वहीं शारीरिक और मानसिक विकार भी दूर होते हैं।

ब्रह्मचर्य का पालन: इस महीने में ब्रह्मचर्य का पालन करना इसलिए जरूरी बताया गया है ताकि आपके मानसिक विकार दूर हों। ब्रह्मचर्य के पालन का अर्थ यही है कि किसी भी ऐसे आचरण से खुद को दूर रखें जिससे आप ईश्वर से दूर होते हैं। ईश्वर के प्रति आपका आकर्षण कम हो ऐसा कोई काम न करें।

द्विदलन निषेध : इस मास में दालों के सेवन का निषेध है। इस मास में हल्के-फुल्के भोजन को ही उत्तम बताया गया है। व्यक्ति को इस मास अपने आहार को संतुलित करना चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य को पा सके। आहार और व्यहार की शुद्धता ही इस मास का ध्येय है। शास्त्रों के मुताबिक इस महीने में मांस-मछली व मट्ठा का त्याग करना चाहिए। इसके साथ ही पूरे महीने संयम से रहना चाहिए। इसके अलावा व्रत-उपवास और नियम के साथ तप करना चाहिए। कार्तिक मास के महीने में शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए। कहते हैं कि इस महीने शरीर पर तेल लगाना वॢजत होता है। केवल एक दिन यानी नरक चतुर्दशी के दिन शरीर पर तेल लगा सकते हैं। इस महीने उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई खाने से परहेज करना चाहिए। मान्यता है इस माह व्रत एवं तप करने वाले साधक को विशेष लाभ मिलता है। विष्णुप्रिया तुलसी जी की पूजा के जरिए भगवान विष्णु तक अपनी बात आसानी पहुंचाई जा सकती है। शास्त्रों में भी इस बात का जिक्र है कि तुलसी जी की बात भगवान विष्णु कभी नहीं टालते हैं।

ऐसे में तुलसी जी की विधिवत पूजा करने से सभी दुख, रोग सब दूर हो जाते हैं। इसके अलावा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस महीने में पडऩे वाली अक्षय नवमी भी बहुत खास होती है। अक्षय नवमी के दिन प्रात: काल आंवला के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। इसके बाद वहीं पर दान आदि करने के बाद प्रसाद स्वरूप विधिवत भोजन भी ग्रहण करना चाहिए। माह के आखिरी के 5 दिन व्रत रखने का भी विधान है। आंवले आदि के नीचे भोजन शुभ करना शुभ होता है।

सायंकाल में भी भगवान विष्णु की पूजा तथा तुलसी पूजा करना चाहिए। इस मास शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रद्धालु तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर वे निराहार रहते हैं और रात्रि में तारों के उदय होने पर उन्हें अर्घ देकर भोजन करते हैं। काॢतक मास में ही भगवान कृष्ण के जीवन में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए। इसी माह में माता यशोदा ने कृष्ण को अपने प्रेम-बंधन में बांधा और इसलिए भक्त भी श्रीकृष्ण को अपनी भक्ति प्रेम से प्रसन्ना करने का प्रयास करते हैं।

इस मास में सूर्य अपनी नीच राशि तुला में रहता है इसलिए उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने से विशेष लाभ मिलता है। मान-सम्मान के साथ आरोग्य की प्राप्ति होती है। जल में हल्दी मिलाने से बृहस्पति मजबूत होने के साथ आरोग्य मिलता है, कुमकुम डालकर जल समॢपत करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है और मिर्च के बीज डालकर अघ्र्य देने से रोजगार की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए तांबे के लोटे में कलावा लपेटकर जल में गुलाब के फूल, केसर और शक्कर डालें। उसी स्थान पर खड़े होकर सूर्यनारायण की तीन या सात परिक्रमा करें। गायत्री मंत्र का जाप करें और आदित्य हदय स्त्रोत का पाठ करें। श्रीहरि के 108 नामों का जाप करें साथ ही महादेव को पांच बिलपत्र श्वेत चंदन नम: शिवाय लिखकर समॢपत करें।

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