ग्रहण के कारण ही बच गयी थी अर्जुन की जान

आज साल का अंतिम सूर्य ग्रहण शुरू हो चुका है. ऐसे में सूतक ग्रहण आरंभ होने से 12 घंटे पहले लगता है और इस नियम के अनुसार भारत में ग्रहण का सूतक बीते कल रात 8 बजे से लग गया था. वहीं ज्योतिशास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है इस कारण से सूर्यग्रहण का प्रभाव सभी जीव-जंतुओं और प्रकृति पर होता है. कहते हैं राहु-केतु से लेकर महाभारत काल का भी सूर्य ग्रहण से संबंध है और ग्रहण के कारण ही एकबार अर्जुन की जान भी बची थी. तो आइए जानते हैं वह कथा.

पौराणिक कथा – मत्स्य पुराण के अनुसार, सूर्य ग्रहण का संबंध समुद्र मंथन में अमृत के निकलने से है. जी दरसल मंथन के बाद जब अमृत बांटा जाने लगा तब स्वरभानु नाम का असुर अमृत पीने की लालसा में अपना रूप बदलकर सूर्यदेव और चंद्रदेव के मध्य में बैठ गया लेकिन दोनों देवताओं ने असुर को पहचान लिया. सूर्य और चंद्रदेव ने असुर की शिकायत मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु से कर दी. इससे पहले कि असुर अमृत का पूरा पान करता तब तक भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन ने असुर का गला काट दिया. लेकिन वह तब तक अमर हो चुका था. यही सिर राहु और धड़ केतु ग्रह बना और सूर्य-चंद्रमा से इसी कारण द्वेष रखता है. उस दिन से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं तब राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है.

शास्त्रों के अनुसार, जिस दिन पांडव और कौरव जुआ खेल रहे थे, उस दिन सूर्य ग्रहण था. पांडव पुत्र युधिष्ठिर उस जुए में अपना पूरा राजपाट, अपने भाई और पत्नी द्रौपदी को भी हार गए थे. शकुनी के पाशे से दुर्योधन ने युधिष्ठिर के संग जुआ खेला था. पाशे को भगवान शिव का वरदान था कि वह जब भी इस पाशे से खेलेगा उसकी जीत होगी. इस छल से कौरवों ने पूरा राजपाट पांडव पुत्रों से ले लिया. कहा जाता है महाभारत के एक और अध्याय का सूर्य ग्रहण से संबंध है. जी दरअसल पांडव पुत्र अर्जुन ने श्रीकृष्ण की मदद से जिस दिन जयद्रथ का वध किया था, उस दिन भी सूर्यग्रहण था. सूर्यग्रहण के कारण ही अर्जुन जयद्रथ का वध करने में सफल हुए. अर्जुन ने अपने बाण से जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर, उसके सिर को जयद्रथ के पिता की गोद में जाकर गिर दिया. सूर्य ग्रहण का संबंध भगवान कृष्ण से भी रहा है.

जिस दिन श्रीकृष्ण की बसाई द्वारका नगरी डूबी थी, उस दिन सूर्यग्रहण था. यहां तक कि जब यह नगरी कृष्ण के प्रपौत्र ने दोबारा बसाई, उस दिन भी सूर्यग्रहण था. कहते हैं शास्त्रों में कथा है कि कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के अवसर पर माता यशोदा और नंद बाबा के साथ देवी राधा भी स्नान करने आई थीं. गोकुल छोड़ने के बाद राधा कृष्ण की फिर से मुलाकात ग्रहण के दिन ही हुई थी. महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन ने सूर्यास्त तक जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा ली थी. अर्जुन ने कहा था कि अगर वह सूर्यास्त तक जयद्रथ को नहीं मार पाए तो वह अग्निसमाधि ले लेंगे.

युद्ध शुरू होते हैं अर्जुन की आंखें जयद्रथ को खोज रही थीं, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. कौरवों ने अर्जुन से जयद्रथ की रक्षा करने के लिए सुरक्षा पंक्ति बना ली थी. वहीं भगवान कृष्ण को पता था कि आज सूर्यग्रहण लगने वाला है. ग्रहण लगते ही जयद्रथ और दुर्योधन खुशी से उछल पड़े. जयद्रथ अर्जुन के सामने यह कहते हुआ आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब तुम अग्निसमाधि लो. इसी बीच ग्रहण समाप्त हो गया और सूर्य फिर से आसमान में चमकने लगे. अर्जुन ने पलक झपकते ही जयद्रथ का वध कर दिया. इस तरह ग्रहण के कारण अर्जुन के प्राण बच गए.

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