सृष्टि को आलोकमान करते हैं भगवान सूर्य

इस सृष्टि में सृजन से पहले कुछ भी नहीं था। घनघोर अंधकार था। ऐसे में परमशक्ति परम पिता परमात्मा  अपने तेज और शक्ति से एक आलोकमान तत्व को अस्तित्व में लाये। इसे हिरण्यगर्भ कहा गया। भगवान सूर्य का दूसरा नाम हिरण्यगर्भ भी है। भगवान सूर्य ऐसे देवता हैं जो इस सृष्टि को आलोकमान करते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के लिए हिरण्यगर्भ से देवी देवता उत्पन्न किए और चराचर जगत अस्तित्व में आया। हिरण्यगर्भ के अस्तित्व में आते ही एक नाद भी हुआ।

इस तरह से सृष्टि की रचना बताई जाती है। ऐसे में सूर्य बहुत ही महत्वपूर्ण देवता है। भगवान सूर्य को ध्याने के लिए कई विधियां कारगर हैं। जिसमें हम सबसे आसान तरीका अर्घ्य  देने का अपनाते हैं। यही नहीं भगवान की आराधना के लिए सूर्य नमस्कार के बारह मंत्र भी बताए गए हैं। इन मंत्रों से सूर्य को प्रसन्न किया जाता है। यही नहीं भगवान सूर्य को गायत्री मंत्र के माध्यम से भी प्रसन्न किया जाता है।

दरअसल भगवान श्रीकृष्ण ने ही कहा है कि मैं गायत्री हूं। मैं स्वयं सूर्य और चंद्र हूं। भगवान सूर्य की आराधना गायत्री मंत्र से भी की जाती है। इस मंत्र के एक एक शब्द के उच्चारण में शक्तिपात होता है। मूलाधार में भू होता है। स्वाधिष्ठान में भुवः होता है, मणिपुर में स्वः होता है, अनाहत में महः होता है, विशुद्धि में जनः होता है, आज्ञा में तप सहस्त्रार में सत्य होता है।

दरअसल सूर्य की आराधना का सूर्य नमस्कार भी दूसरा उपाय है। दरअसल यह एक आसन है मगर इससे मानव के शरीर में मौजूद कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है। सूर्य नमस्कार के अलग अलग आसन ईश्वरीय शक्ति का अहसास करवाता है। इसमें भी विशुद्धि चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र आदि चक्रों का जागरण होता है। इससे सूर्य देव प्रसन्न होकर तेज, बल, बुद्धि, विद्या, आरोग्य और कीर्ति प्रदान करते हैं।

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