जानिये कब है जया एकादशी व्रत, पूजा और कथा के नियम जाने

जया एकादशी व्रत 05 फरवरी को है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक , माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं।वही  इस एकादशी को अजा एकादशी भी कहते हैं। वही जया एकादशी को बहुत ही पुण्यदायी एकादशी मानी जाती है। यह एकादशी का व्रत करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा शास्त्रों के मुताबिक इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को भूत-प्रेत, पिशाच मुक्ति मिल जाती है। मान्यता के मुताबिक, जो कोई भक्त जया एकादशी व्रत का पालन सच्ची श्रद्धा के साथ करता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। वही इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से दोषों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा जया एकादशी मुहूर्त-एकादशी तिथि प्रारंभ – 04 फरवरी, 21:51:15 बजे से,एकादशी तिथि समाप्त -05 फरवरी, 21:32:38 बजे तक, जया एकादशी पारणा मुहूर्त : 06 फरवरी, 07:06:41 से, 09:18:11 बजे तक अवधि :2 घंटे 11 मिनट

ऐसे करें जया एकादशी व्रत- इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत किया जाता है। इस दिन ये उपाय करेंगे तो आपकी किस्मत चमक सकती है। इस दिन किए गए उपायों से भाग्य दोष दूर होते हैं। वही भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। भगवान विष्ण़ु को पीले फूल अर्पित करें। इसके अलावा घी में हल्दी मिलाकर भगवान विष्ण़ु का दीपक करें। इसके साथ ही  पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनी मिठाई रखकर भगवान को चढ़ाएं। वही एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाएं। भगवान विष्णु को केले चढ़ाएं और गरीबों को भी केले बांट दें। भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी का पूजन करें और गोमती चक्र और पीली कौड़ी भी पूजा में रखें।

जया एकादशी व्रत कथा
जया एकादशी के बारे में एक कथा का उल्लेख किया गया है कि इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था। परन्तु उसका मन अपनी प्रिया को याद कर रहा था। इस कारण से गाते समय उसकी लय बिगड़ गई। इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। पिशाच योनी में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे। संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी के दिन दुःखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाये। इस तरह अनजाने में इनसे जया एकादशी का व्रत हो गया।इस व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गये और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये। देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो हैरान हुए। गन्धर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में ही जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस व्रत के दिन पवित्र मन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार से जया एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। जो लोग इस एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं वह भी आज के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें और जरुरतमंदों की सहायता करें तो इससे भी पुण्य की प्राप्ति होती है।

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