मेघनाद को मिला था सदैव विजयी होने का वरदान, एक गलती से मिली मौत

इन दिनों रामायण से जुड़े किस्से पढ़ना लोग पसंद कर रहे हैं क्योंकि इस समय रामायण को प्रसारित किया जा रहा है जो लोग देख रहे हैं. ऐसे में आप जानते ही होंगे रामायण में इस समय राम और रावण के सैनिकों के बीच युद्ध चल रहा है. वहीं लक्ष्मण जी ने मेघनाद का वध कर दिया है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि रामायण की कथा के अनुसार मेघनाद के पास कई सिद्धियां होने के बाद भी क्यों हो गया उनका वध…? जी दरअसल बताया जाता है कि वो हर युद्ध से पहले यज्ञ करके अपनी कुल देवी को प्रसन्न करता था और सिर्फ यही नहीं ब्रह्मा का उसे वरदान भी था कि वो हर युद्ध में विजयी भी होगा लेकिन फिर भी लक्ष्मण जी ने उसला वध किया. आइए जानते हैं कैसे और क्या है ये रोचक कथा.

गुरु शुक्राचार्य से मिली शिक्षा – पहले तो आपको बता दें कि मेघनाद की शिक्षा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के निर्देश में हुई थी. गुरु की ही सहायता से उसने सप्तयज्ञ किये. वहीं इस यज्ञ से खुश होकर भगवान शिव ने उसे दिव्य अस्त्र और मायावी शक्तियां दीं. मेघनाद इन्हीं दिव्य शक्तियों का प्रयोग हर युद्ध में किया करता था. राम से युद्ध में भी उसने यही मायावी शक्तियों का इस्तेमाल किया.

इंद्र को छुड़ाने के लिए ब्रह्मा जी ने दिया था वरदान – कहा जाता है मेघनाद ने अपनी माया से इंद्र को बंधक बना लिया था. इंद्र के गायब होने के बाद हाहाकार मच गया. सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे गुहार लगाई. उसके बाद ब्रह्मा जी मेघनाद के पास इंद्र को छुड़ाने गए. बताया जाता है कि ब्रह्मा जी ने ही मेघनाद को इंद्रजीत का नाम दिया और विशेष वरदान दिया जो उसकी मौत का कारण बना. ब्रह्मा जी ने मेघनाद को वरदान स्वरूप दिया कि वह हमेशा अपराजेय रहेगा, लेकिन अगर यज्ञ में बाधा हुई तो मेघनाद मारा जाएगा.

राम-लक्ष्मण से युद्ध की तैयारी – वहीं आपने देखा होगा राम और लक्ष्मण से युद्ध करने से पहले मेघनाद अपनी कुल देवी को मनाने के लिए निकुंभिला मंदिर में यज्ञ शुरु किया. इस युद्ध में जाने से पहले मेघनाद ने राक्षसी हवन भी किया और रीति के मुताबिक एक काले बकरे को अग्नि में प्रवाहित किया. इससे प्रसन्न होकर अग्नि ने खुद उसको जीत का वरदान दिया. वहीं युद्ध में उसने नागपाश से लक्ष्मण जी पर हमला किया जिससे वो मूर्छित हो गए. वहीं इस घटना के बाद युद्ध कुछ देर के लिए बंद हो गया और हनुमान, लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी लाने गए तो वहीं मेघनाद ने एक बार फिर से यज्ञ पूरा करने में लग गया. उस दौरान एक बार फिर जब लक्ष्मण जी सही हुए तो युद्ध प्रारंभ हो गया. वहीं लक्ष्मण जी को पता चला कि मेघनाद को हराने का सिर्फ एक ही रास्ता है उसका यज्ञ ना पूरा होने देना. जी दरअसल मेघनाद युद्ध के पहले एक विशालकाय वृक्ष के पास भूतों की बलि भी देता था जिससे वह युद्ध के दौरान अदृश्य हो सके. लक्ष्मण जी उसी वृक्ष के पास उसका इंतजार करते रहे और जब मेघनाद वहां पहुंचा तो लक्ष्मण ने यज्ञ से निकले घोड़े और सारथी पर प्रहार कर मार डाला. उसके बाद गुस्से में मेघनाद अपने महल वापस लौटा और फिर वहां से दूसरे रथ पर रणभूमि में पहुंचा. वहीं एक बार फिर दोनों का युद्ध हुआ मेघनाद मारा गया.

आज ही है कालाष्टमी, जाने काल भैरव देव पूजा विधि
आप नहीं जानते होंगे ध्रुव की यह कथा

Check Also

पापमोचनी एकादशी पर करें भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप

पापमोचनी एकादशी बेहद पवित्र मानी जाती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और देवी …