जब शिव भगवान ने निभाया था पिता होने का धर्म

आने वाले 21 जून को पितृ दिवस है. ऐसे में हम सभी जानते हैं कि इसे अभी अभी मनाना शुरू हुआ है लेकिन पिता और संतान का संबंध और उसके विभिन्न स्वरूपों का वर्णन हमारे शास्त्रों में काफी समय किया गया है. अब पितृ दिवस के एक दिन पहले हम आपको बताने जा रहे हैं पौराणिक पिता-पुत्र से संबंधित महत्वपूर्ण कथा.

1. शिव पुराण में पिता-पुत्र :  इस कथा में स्नान के लिए जाते हुए पार्वती अपने उबटन के मैल से एक सुंदर बालक का पुतला बनाती हैं और फिर अपनी शक्तियों से उसमें प्राण डाल देती हैं. वे उसे निर्देश देती हैं कि जब तक वे स्नान करके न आ जाएं, बालक किसी को भी भीतर न आने दे. कुछ ही देर में स्वयं शिव वहां आते हैं और अपनी मां के आदेश का अक्षरशः पालन कर रहा बालक उन्हें भी रोक देता है. शिव द्वारा अपना परिचय देने पर भी वह टस से मस नहीं होता. कुपित होकर शिव उसका सिर धड़ से अलग कर देते हैं. वहीं जब पार्वती को पता चलता है तो वे दुख से बेहाल हो जाती हैं और बालक के जन्म की बात बताते हुए अपने पति से उसे पुनः जीवित करने को कहती हैं. तब शिव हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर देते हैं और उसे गणेश नाम देते हुए अपने समस्त गणों में अग्रणी घोषित करते हैं. साथ ही कहते हैं कि गणेश समस्त देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे.

2. प्रह्लाद-हिरण्यकशिपु : धृतराष्ट्र के ठीक विपरीत कथा है हिरण्यकशिपु की. कहा जाता है अपनी शक्ति के मद में चूर हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान मान बैठा और जब उसके पुत्र प्रह्लाद ने उसे भगवान मानने से इंकार करते हुए भगवान विष्णु की आराधना जारी रखी, तो वह अपने ही बेटे की जान का दुश्मन बन बैठा और उसे मरवाने के लिए एक के बाद एक षड्‌यंत्र करता रहा. वहीं उसे उसके कर्मों का फल तब मिला जब विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर उसका वध कर डाला.

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