भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है कांवड़ यात्रा, अलग-अलग तरह से निकलती है कांवड़ यात्रा

 सावन मास महादेव का प्रिय मास है और इस मास में शिवभक्त उनको प्रसन्न करने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। भोलेनाथ भी अपने भक्तों की आराधना से प्रसन्न होकर उनको मनचाहा वरदान देते हैं। जलाभिषेक, उपवास, कांवड़ यात्रा आदि शिव को प्रिय है। इसलिए सावन मास में शिवभक्त शिव जलाभिषेक के लिए कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं। कांवड़ यात्रा सामान्यत: छह प्रकार की होती है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

सामान्य कांवड़

इस तरह की कांवड़ यात्रा में कांवड़िए यात्रा के बीच में आराम कर सकते हैं और कुछ विश्राम के बाद फिर से कांवड़ यात्रा को जारी रख सकते हैं। इसमें एक बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है। इसलिए कांवड़ को रखने के लिए स्टेंड का उपयोग करते हैं।

झूला कांवड़

झूला कांवड़ में एक बांस के डंडे पर दोनों ओर कांवड़ बांधकर यात्रा का प्रारंभ किया जाता है। इसमें दोनों कांवड़ में कांवड़िये गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल को भरते हैं। भोजन या विश्राम करते समय इसको भी जमीन पर नहीं रखते हैं।

खड़ी कांवड़

खड़ी कांवड़ के नियम काफी सख्त है। इसमें कांवड़ को न तो जमीन पर रखा जाता है न ही उसको कहीं पर टांगा जाता है। जब खड़ी कांवड़ लेने वाले कांवड़िये को विश्राम या भोजन करना होता है तो किसी दूसरे कांवड़िये को उसकी कांवड़ को उठाना होता है।

झांकी कांवड़

झांकी कांवड़ को एक झांकी के स्वरूप में सजाकर निकाला जाता है। इस तरह की कांवड़ यात्रा में कांवड़ियों का बड़ा ग्रुप शामिल होता है। शिवभजनों के साथ इस तरह की कांवड़ यात्रा निकाली जाती है और कांवड़िये नाचते गाते कांवड़ यात्रा निकालते हैं।

डाक कांवड़

डाक कांवड़ का स्वरूप भी काफी भव्य होता है। इसमें कांवड़िये भोलेनाथ की मूर्ति को सजाकर कांवड़ यात्रा के साथ में ले जाते हैं। इस कांवड़ यात्रा में भी शिव भजनों की धूम मची रहती है। इसमें जब मंदिर कि दूरी 24 या 36 घंटे की रह जाती है तो कांवड़िये उस दूरी को दौड़ते हुए तय करते हैं।

दांडी कांवड़

यह कांवड़ यात्रा काफी मुश्किल होती है। इसमें शिवभक्त कांवड़िये नदी के तट से शिवालय तक की दूरी को दंडवत होते हुए पूरा करते हैं। इस यात्रा में कांवड़ियों का काफी समय लग जाता है।

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