सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर में स्थित है प्रथम ज्योतिर्लिंग, जानें इसका महत्व और कथा

चातुर्मास में भगवान शिव की उपासना विशेष फलदायी मानी गई है. चातुर्मास में सावन का संपूर्ण महीना भगवान शिव को समर्पित है. सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन का विशेष महत्व माना गया है-

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारंममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वरा:॥ 

मान्यता है कि  सावन के महीने में जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रात: इन ज्योतिर्लिंग के नामों का जाप करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. लोक परलोक दोनों में इसका लाभ प्राप्त होता है. सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. किसी भी कार्य को करने से पहले यदि सभी ज्योतिर्लिंग का नाम लिया जाता है तो उस कार्य के सफल होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. साथ ही भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह पहला ज्योतिर्लिंग है. जो कि गुजरात के काठियावाड़ स्थित प्रभास में विराजमान हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी नर लीला समाप्त की थी. माना जाता है कि सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना खुद चंद्रमा ने की थी. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को विशेष महत्व प्रदान किया गया है. चंद्रमा द्वारा इस शिवलिंग को स्थापित किए जाने के कारण इसे सोमनाथ कहा जाता है.

पौराणिक कथा: चंद्रमा को मिली थी श्राप से मुक्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था. रोहिणी दक्ष की सभी कन्याओं में से सबसे अधिक सुदर थी. चंद्रमा रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे. इस बात से दक्ष की अन्य पुत्रियां रोहिणी से बैर रखने लगीं. जब यह बात प्रजापति दक्ष को पता चली तो उसने क्रोधित होकर चंद्रमा को धीरे- धीरे क्षीण (खत्म) होने का श्राप दे दिया. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने चंद्रमा को प्रभास क्षेत्र जहां पर सोमनाथ का मंदिर है वहां पर भगवान शिव की तपस्या करने को कहा.

चंद्रमा ने सोमनाथ में शिवलिंग की स्थापना करके उनकी पूजा की. कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शाप से मुक्त कर दिया और अमरत्व का वरदान दिया. शंकर जी के वरदान के कारण ही चंद्रमा कृष्ण पक्ष को एक-एक कला क्षीण (खत्म) होता है और शुक्ल पक्ष को एक-एक कला बढ़ता है और हर पूर्णिमा को पूर्ण रूप को प्राप्त होता है. पंचांग इसी आधार पर कार्य करता है. शाप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव को माता पार्वती के साथ सोमनाथ में ही रहने की प्रार्थना की. तब से भगवान शिव सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करते हैं.

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