जन्माष्टमी पर जरुर पढ़े श्रीकृष्ण और महाभारत से संबंधित ये अज्ञात सत्य

आप सभी जानते ही होंगे शास्त्रों में चार युगों के बारे में बताया गया है. जी हाँ, इनमे है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग. इन सभी युग में से तीन तो चले गए हैं और अभी चल रहा है कलियुग. कहा जाता है द्वापर युग में महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण भी अपनी द्वारिका वापस आ गए थे. उसी के कुछ समय तक के लिए वो द्वारिका में ही रहे थे और फिर श्रीकृष्ण वैकुंठ चले गए जो उनका असली धाम कहा जाता है.

कहा जाता है जिस समय श्री कृष्ण चले गए थे तब अर्जुन युद्ध हारने लगे थे और पांडवों को लगातार हार मिल रही थी और इससे पांडव बेहद दुखी थे. उस समय युधिष्ठिर ने अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परिक्षित को राजा बना दिया था और उसी के बाद युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ यात्रा पर हिमालय की तरफ चले गए. कहा जाता है इसी यात्रा में पांडवों और द्रौपदी का अंत हुआ था और केवल युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वर्ग में शामिल हुए थे. जी दरअसल जब श्रीकृष्ण चले गए थे उसके बाद धरती पर कलियुग आ गया था और राजा परिक्षित ने इन्हें युद्ध में हरा दिया था. उस समय कलियुग ने धरती पर स्थान पाने के लिए प्रार्थना की और इस पर राजा परिक्षित ने कलियुग को जुआ, हिंसा, व्यभिचार और मदिरा वाला स्थान दे दिया था.

उस समय कलियुग ने फिर एक स्थान मांगा था तो परिक्षित ने कलियुग को सोने में रहने का स्थान दिया था. कहते है कि जो लोग उपरोक्त सभी चीजों जुआ, हिंसा, व्यभिचार, मदिरा और सोने को छोड़ देते हैं उन पर कलियुग हावी नहीं होता है. इसके अलावा यह भी कहते हैं कि कलियुग की एक और महिमा है. जी दरअसल शुभ फल को पाने के लिए इस युग में केवल भगवान का नाम याद करना और जपना ही एकमात्र उपाय माना जाता है. इसी के साथ दान करना भी कलियुग में श्रेष्ठ माना कहा जाता है.

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