इस कथा को सुनने से खुल जाते हैं स्वर्ग के दरवाजें

आज 29 नवंबर को भी बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जा रहा है। आप सभी को बता दें कि बैकुंठ चतुर्दशी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं बैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा।

बैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा- बैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूमकर बैकुंठ धाम पंहुचते हैं। भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं। नारद जी कहते है- हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है। इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं। जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें।

यह सुनकर विष्णु जी बोले- हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे। इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोडा़-सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुंठ धाम को प्राप्त करेगा।

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