आज है गणेश जयंती, आइये जानें व्रत कथा

आज गणेश चतुर्थी का पर्व है। इसे माघी गणेश चतुर्थी या माघी गणेश जयंती के नाम से जाना जाता है। आप सभी को बता दें कि हिंदू धर्म की मान्यता है कि माघ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सर्वप्रथम गणेश तरंगें धरती पर आईं थीं। जी दरअसल गणेश जयंती पर उपवास भी रखा जाता है जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। कहते हैं गणेश जयंती के दिन लाल रंग के वस्त्र, लाल फूल, और लाल चंदन को पूजा में जरूर शामिल करना चाहिए। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेश जयंती की कथा।आज है गणेश जयंती, आइये जानें व्रत कथा

गणेश जयंती तिथि – 15 फरवरी।

गणेश जयंती की कथा- एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करतो हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा। पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक में स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना। भोगवती में स्नान कर जब श्रीगणेश अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर वो घर के अंदर चले गए। शिवजी जब घर के अंदर गए तो वह बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया।

दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब शिवजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया। इतना सुनकर पार्वतीजी दुखी हो गई और विलाप करने लगी। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई। कहा जाता है कि जिस तरह शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं।

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