आखिर क्यों पांडवों ने की थी केदारनाथ मंदिर की स्थापना, जानिए रहस्य

भारत देश अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है वही बात यदि ज्योतिर्लिंगों की हो तो हिन्दू धर्म में हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना गया है। हिन्दू पुराणों में वर्ष के लगभग छ: महीने हिम से आच्छादित रहने वाले इस पवित्र धाम को महादेव का निवास स्थान बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां महादेव त्रिकोण शिवलिंग के रूप में हर वक़्त विराजमान रहते हैं। वैसे तो पौराणिक ग्रंथों में इस धाम से संबंधित कई कथाओं का वर्णन मिलता है लेकिन आज आपको महाभारत में इस धाम से संबंधित एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें ये कहा गया है कि यहां पांडवों को महादेव ने साक्षात् दर्शन दिए थे। जिसके पश्चात् पांडवों ने यहां इस धाम को स्थापित किया।
आइए जानते हैं केदारनाथ से संबंधित इस रोचक कथा के बारे में:- धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के मुताबिक, महाभारत युद्ध में विजय के बाद पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के नरेश के तौर पर राज्याभिषेक किया गया। उसके पश्चात् लगभग चार दशकों तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज्य किया। इसी के चलते एक दिन पांचों पांडव प्रभु श्री कृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा में पांडवों ने श्री कृष्ण से कहा हे नारायण हम सभी भाइयों पर ब्रम्ह हत्या के साथ अपने बंधु बांधवों की हत्या कलंक है। वही इस कलंक को कैसे दूर किया जाए? तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि ये सच है कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है किन्तु तुमलोग अपने गुरु तथा बंधु बांधवों को मारने की वजह से पाप के भागी बन गए हो। इन पापों की वजह से मुक्ति मिलना असंभव है। लेकिन इन पापों से केवल महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं। अतः महादेव की शरण में जाओ। उसके पश्चात् श्री कृष्ण द्वारका लौट गए। तत्पश्चात, पांडव पापों से मुक्ति के लिए चिंतित रहने लगे तथा मन ही मन सोचते रहे कि कब राज पाठ को त्यागकर महादेव की शरण में जाएं। उसी बीच एक दिन पांडवों को जानकारी मिली कि वासुदेव ने अपना देह त्याग दिया है तथा वो अपने परमधाम लौट गए हैं। ये सुनकर पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना ठीक नहीं लग रहा था। गुरु, पितामह तथा सखा सभी तो युद्धभूमि में ही पीछे छूट गए थे। माता, ज्येष्ठ, पिता एवं काका विदुर भी वनगमन कर चुके थे। सदा के सहायक कृष्ण भी नहीं रहे थे। ऐसे में पांडवों ने राज्य परीक्षित को सौंप दिया तथा द्रौपदी सहित हस्तिनापुर छोड़कर महादेव की खोज में निकल पड़े। वही हस्तिनापुर से निकलने के पश्चात् पांचों भाई और द्रौपदी महादेव के दर्शन के लिए सबसे पहले पाण्डवकाशी पहुंचे, पर वो वहां नहीं मिले। उसके पश्चात् उन लोगों ने कई और स्थानों पर महादेव को खोजने की कोशिश की लेकिन जहां कहीं भी ये लोग जाते महादेव वहां से चले जाते। इस क्रम में पांचों पांडव तथा द्रौपदी एक दिन महादेव को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। यहां पर भी महादेव ने इन लोगों को देखा तो वो छिप गए लेकिन यहां पर युधिष्ठिर ने महादेव को छिपते हुए देख लिया। तब युधिष्ठिर ने महादेव से कहा कि हे प्रभु आप कितना भी छिप जाएं परन्तु हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे तथा मैं ये भी जनता हूं कि आप इसलिए छिप रहे हैं क्यूंकि हमने पाप किया है। वही युधिष्ठिर के इतना कहने के पश्चात् पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे। उसी वक़्त एक बैल उन पर झपट पड़ा। ये देख भीम उससे लड़ने लगे। इसी मध्य बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया जिसके पश्चात् भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया तथा उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया तथा कुछ वक़्त के पश्चात् शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए। शिव ने पंड़ावों के पाप क्षमा कर दिए। वही आज भी इस घटना के प्रमाण केदारनाथ का शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में उपस्थित हैं। महादेव को अपने समक्ष साक्षात् देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया तथा उसके पश्चात् महादेव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बतलाया तथा फिर अंतर्ध्यान हो गए। उसके पश्चात् पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की तथा आज वही शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। क्यूंकि यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का मार्ग स्वयं शिव जी ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल मन जाता है तथा ऐसी प्रथा है कि यदि कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले तथा उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है। वही इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान चारों तरफ होता है।
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