विभिन्न शास्त्रों और पुराणों आदि में हर दिवस व मास को मनाए जाने वाले पर्व, उत्सव, व्रत आयोजनों आदि का उल्लेख उनके फलादि के साथ किया गया है। हिंदू धर्म के अनुसार साल के सभी बारह महीनों को किसी-न-किसी देवता के साथ संयुक्त कर उसके महत्व का उल्लेख उनमें किया गया है। जैसे श्रावण मास शिव को समर्पित है, फाल्गुन कामदेव को, उसी तरह पुरुषोत्तम मास विष्णु को और कार्तिक मास कृष्ण को। कार्तिक मास के बारे में, ऐसी मान्यता है कि कृष्ण को वनस्पतियों में तुलसी, पुण्यक्षेत्रों में द्वारिका, तिथियों में एकादशी, प्रियजनों में राधा, महीनों में कार्तिक विशेष प्रिय हैं।
जिसे लेकर एख श्लोक भी प्रचलित है-
‘कृष्ण: प्रियो हि कार्तिक: कार्तिक: कृष्ण वल्लभ:’
क्यों कृष्ण को प्रिय कार्तिक है
भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार कृष्ण की प्रतीक्षा में राधा कुंज में बैठी थी, कृष्ण की प्रतीक्षा में समय बीत रहा था और राधा की चिंता भी। काफी प्रतीक्षा के बाद कृष्ण आए तब राधा क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपना गुस्सा उतारने के लिए कृष्ण को लताओं की रस्सी से बांध दिया पर कृष्ण मंद-मंद मुस्कराते रहे। यह देख राधा शीघ्र ही सामान्य संयत हो गई और कृष्ण से देरी का कारण पूछा। कृष्ण ने बतलाया कि उस दिन कार्तिक में मनाया जाने वाला एक पर्व था और मैया यशोदा ने उन्हें रोक लिया और आयोजन के बाद ही उन्हें आने दिया।
कारण जानकर राधा को अपनी भूल का पछतावा हुआ और कृष्ण से क्षमा मांगने लगी। इस पर कृष्ण ने कहा कि राधा क्षमा मत मांगो मैं तो तुम्हारे साथ बंधा ही हूं और चूंकि आज तुमने प्रत्यक्ष रूप से मुझे बांधा इसलिए यह महीना मुझे विशेष रूप से प्रिय होगा। इस तरह कार्तिक महीने को एक और नाम मिला ‘राधा-दामोदर मास।
इसके बारे में एक मान्यता यह है कि इस महीने में राधा रानी का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन करने से श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं और वे सभी कामनाओं की पूर्ति करते हैं क्योंकि राधा को प्रसन्न करने के समस्त उपक्रम कृष्ण को अतिप्रिय होते हैं।