यात्रा को सफल बनाए बजरंगबली का यह मंत्र

यदि आप या आपका कोई अपना किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु यात्रा पर जा रहा है, तो यात्रा की सफलता के लिए निम्न मंत्र का जाप करें… 
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मंत्र :- रामलखन कौशिक सहित, सुमिरहु करहु पयान। लच्छि लाभ लौ जगत यश, मंगल सगुन प्रमान।। 
 
मंत्र :- प्रविसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कौसल पुर राजा।। 
 
जिस स्थान की यात्रा करनी हो, वहां पहुंचते ही उक्त मंत्र सात बार बोलें, उस स्थान से लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
अधिक प्रभाव के लिए ग्रहण काल, हनुमान जयंती, रामनवमी, होली, दीपावली या नवरात्रि के अवसर पर उक्त मंत्र का हनुमानजी के मंदिर में एक हजार आठ (1008) बार जप करके उसे सिद्ध कर लें। फिर जब भी यात्रा पर जाएं, यह मंत्र सात बार बोलकर घर से निकलें। सफलता प्राप्त होगी।

हनुमानजी से जानिए सफलता के 3 मंत्र

हर मनुष्य को अपने जीवन काल में सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होगा। क्योंकि बिना संघर्ष के सफलता नहीं पाई जा सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हनुमान है। जैसे – रामभक्त हनुमान ने भी लंका जाने के लिए और वहां माता सीता को खोजने के लिए बहुत संघर्ष किया था। इसलिए मनुष्य को संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
इसी प्रकार जामवंत भी लंका विजय के अभियान में सबसे बुजुर्ग वानरसेना थे। जब हम सुंदरकांड का पाठ शुरू करते हैं तो शुरुआत में ही उनके नाम का उल्लेख आता है, वह हमें सीख देता है कि हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करें।
जीवन में बड़ा काम करने से पहले तीन चीजें जरूरी हैं :
पहला- काम शुरू करने के पहले भगवान का नाम लें।
दूसरा- बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें।
तीसरा है – काम की शुरुआत मुस्कुराते हुए करें।
 
स्वयं हनुमानजी ने भी लंका जाने के पहले इन तीनों काम किया था। उन्होंने हमें बताया कि
सफलता का पहला सूत्र है- सक्रियता। जैसे हनुमानजी हमेशा सक्रिय रहते थे। वैसे ही मनुष्य का तन हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और मन निष्क्रिय होना चाहिए। मन का विश्राम ही मेडीटेशन है। आप मन को निष्क्रिय करिए तो जीवन की बहुत-सी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।
सफलता का दूसरा सूत्र है- सजगता। मनुष्य को हमेशा सजग रहना चाहिए। यह तभी संभव है, जब उसका लक्ष्य निश्चित होगा। इससे समय और ऊर्जा
का सदुपयोग होगा।
इसका उदाहरण यह है कि स्वयं हनुमानजी ने लंका यात्रा के दौरान कई तरह की बाधाओं का सामना किया। सबसे पहले उन्होंने मैनाक पर्वत को पार किया, जहां पर भोग और विलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन हनुमानजी ने मैनाक पर्वत को केवल छुआ। अन्य चीजों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया।
इसके बाद उन्हें सुरसा नामक राक्षसी मिली। इसे पार करने के लिए हनुमानजी ने लघु रूप धारण किया। हनुमानजी का यह लघु रूप हमें बताता है कि दुनिया में बड़ा होना है, आगे बढ़ना है तो छोटा होना पड़ेगा। छोटा होने का तात्पर्य यहां आपके कद से नहीं आपकी विनम्रता से है, यानी हमें विनम्र होना पड़ेगा।
सफलता का तीसरा सूत्र है- सक्षम होना यानी मनुष्य को तभी सफलता मिल सकती है, जब वह सक्षम होगा। सक्षम होने का मतलब केवल शारीरिक रूप से ही सक्षम होना नहीं है, बल्कि तन, मन और धन तीनों से सक्षम होना है। जब हम इन तीनों से पूरी तरह सक्षम हो जाएंगे तभी हम सफलता को प्राप्त कर सकेंगे।
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