कर्ण थे अर्जुन से श्रेष्ठ योध्दा, उनकी वीरता से श्री कृष्ण और पितामह भीष्म भी थे प्रभावित

महाभारत में बार-बार तिरस्कार सहने के बाद भी कर्ण ने कभी धैर्य नहीं खोया. अपने अस्तित्व को कायम रखते हुए कर्ण ने अपने ज्ञान और आचरण से महाभारत के महारथियों के बीच अपनी एक अलग ही पहचान बनाई. कौरवों की तरफ से कर्ण ने पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ा था. बावजूद इसके कर्ण को एक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

कर्ण को नहीं मिला हक
कर्ण को श्राप के कारण जीवन भर कष्ट भोगने पड़े और वो सम्मान और हक नहीं प्राप्त हुआ जिसके वे हकदार थे. कर्ण युधिष्ठिर और दुर्योधन से उम्र में बड़े थे. बावजूद इसके उन्हें इन दोनों के सामने ही झुकना पड़ता था.

ऐसे हुए था कर्ण का जन्म
कर्ण कुंती के पुत्र थे. एक दिन उनके राज्य में जब महर्षि दुर्वासा पधारे तो उनका आदर सत्कार किया. इससे महर्षि दुर्वासा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजकुमारी कुंती को प्रसन्न होकर एक मंत्र दिया. उन्होंने कहा कि वे जिस भी देवता का नाम लेकर इस मंत्र का जाप करेंगी, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी और उस पुत्र में उस देवता के ही गुण विद्यमान होंगे. मंत्र और वरदान देकर महर्षि दुर्वासा प्रस्थान कर गए. एक दिन कुंती ने इस मंत्र का परिक्षण करना चाहा और उन्होंने भगवान सूर्य का नाम लेकर मंत्र का उच्चारण प्रारंभ किया और कुछ ही क्षणों में एक बालक ने कुंती में जन्म लिया. वरदान के मुताबिक जन्म लेने वाले पुत्र में उस देवता के गुण होंगे, इस बालक के मुख पर सूर्य के समान तेज था. इस तरह से कर्ण की माता कुंती और पिता भगवान सूर्य थे. लेकिन जिस समय कर्ण का जन्म हुआ, उस समय राजकुमारी कुंती अविवाहित थी. इसलिए लोकलाज के भय से कर्ण का त्याग कर दिया. लेकिन कुंती अपने पुत्र प्रेम के कारण कर्ण की सुरक्षा के लिए परेशान थीं. तब कुंती की प्रार्थना पर भगवान सूर्य ने सुरक्षा के लिए कर्ण को अभेद्य कवच और कानों में कुंडल प्रदान किए.

टोकरी में रखकर कर्ण को गंगा नदी में बहा दिया
सूर्य से कवज मिलने के बाद कुंती ने कर्ण को एक टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया. अधिरथ नामक एक व्यक्ति को नदी में टोकरी में बहकर आता हुआ बालक दिखाई दिया और इस व्यक्ति ने इस बालक को अपने पुत्र के रूप में अपनाया. यह व्यक्ति हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र का सारथी था. अधिरथ और उसकी पत्नि ‘राधा’ ने कर्ण का लालन पालन किया.

कर्ण की वीरता से कृष्ण और भीष्म भी प्रभावित थे
कर्ण अंग देश राजा थे. इसीलिए कर्ण को अंगराज के नाम से भी जाना जाता हैं. कर्ण की वीरता से श्री कृष्ण और पितामह भीष्म भी प्रभावित थे. ये दोनों ही कर्ण की प्रशंसा करते थे. श्रीकृष्ण इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि अर्जुन को हराने की क्षमता सिर्फ कर्ण में ही है. महाभारत के युद्ध में इसीलिए अर्जुन को कर्ण का वध करने के लिए अनीति का प्रयोग करना पड़ा. अर्जुन ने कर्ण का वध उस समय किया, जब कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस गया था और वे उसे निकाल रहे थे और उस कर्ण समय निहत्थे थे. तभी अर्जुन कर्ण पर तीरों की वर्षा कर देते हैं और इस प्रकार रणभूमि में कर्ण वीरगति को प्राप्त होते हैं.

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