शनिदेव के बारे में कई लोगों को यह मिथक है कि ये मारक, अशुभ और दु:ख कारक हैं। जबकि ऐसा नहीं है। पूरी प्रकृति में संतुलन पैदा करने का काम शनिदेव का है। ये हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो शनिदेव का व्रत रखते हैं और विधि-विधान से इनकी पूजा भी करते हैं। श्रावण मास में शनिदेव की पूजा का महत्व बहुत ज्यादा होता है। शिवजी की पूजा के साथ-साथ इस दौरान लोग शनिदेव की भी आराधना करते हैं। कई लोगों को यह पता नहीं होगा कि श्रावण मास में शनिदेव की आराधना क्यों की जाती है। यहां हम आपको इसका पौराणिक कारण बता रहे हैं। हालांकि, हर किसी के लिए इसका महत्व अलग-अलग है।
श्रावण मास में क्या है शनिदेव की पूजा का महत्व:
मान्यता के अनुसार, अगर इस समय किसी के ऊपर शनि की साढ़ेसाती चल रही है तो वो उसका प्रभाव इस दौरान शिवजी की पूजा करने से खत्म हो जाता है। इस मास में शनि की पीड़ा से शिवजी मुक्ति दिलाते हैं। शिवजी का रुद्राभिषेक करा आप भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और शनिदेव के आराध्य भगवान शिव हैं। ऐसे में मान्यता तो यह भी है कि सावन मास के दौरान जो लोग शिव की पूजा अर्चना करते हैं उन पर शनिदेव कभी क्रोधित नहीं होते हैं। कहा जाता है कि अगर व्यक्ति के कर्म सही हैं और वो भोलेनाथ का भक्त है तो शनिदेव की कृपा हमेशा उसपर बनी रहती है।
साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए आप श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं साथ ही शनिदेव के मंत्रों का भी उच्चारण करें जो इस प्रकार हैं। शनिदेव का मंत्र ऊं प्रां प्रीं स: शनिचश्चार नम: है। इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
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