अपनी राशि से शनि का प्रकोप कम करने के लिए शनिवार को व्रत कर सकते है। व्रत करने से पहले शनि देव की पूजा होती है। पूजा में काले तिल, काला वस्त्र, लोहा, तेल आदि अवश्य होता है। इस व्रत को करने से तमाम तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। व्रत की कथा एक राजा था। उसने अपने राज्य में यह घोषणा की दूर-दूर से सौदागर बाजार में माल बेचने आएं जिस सौदागर का माल नहीं बिकेगा उसका सामान मैं खरीद लूंगा। इस तरह जब किसी सौदागर का माल नहीं बिकता तो राजा के आदमी उस सादागर के पास जाकर माल खरीद लेते। एक दिन की बात है कि लोहार लोहे की शनिदेव की मूर्ति बना कर लाया। शनिदेव की मूर्ति का कोई खरीददार नहीं मिला। शाम के समय राजकर्मचारी आए और मूर्ति खरीदकर राजा के पास ले गए। राजा ने उस मूर्ति को अपने पास आदर पूर्वक रख लिया। इस तरह शनिदेव के आ जाने से घर में रहने वाले अनेकानेक देवी-देवता राजा से नाराज हो गए। रात के समय एक स्त्री के राजा ने घर से जाते देखा।
जब राजा ने पूछा कि आप कौन है तो उसने उत्तर दिया मैं लक्ष्मी हूं। तुम्हारे महल में शनि का वास है। अतः में यहां नहीं रहूंगीं। कुछ दिनों बाद एक राजपुरुष भी घर से बाहर जाते दिखे तो राजा के पूछने पर पता चला कि वह वैभव हैं। उन्होंने कहा में सदा लक्ष्मीजी के साथ रहता हूं। तो मेरा यहां क्या काम। राजा ने उसे भी नहीं रोका। इसके बाद रात में धर्म, धैर्य, क्षमा, आदि अन्य सभी गुण एक-एक कर चले गए।
राजा ने किसी से भी रुकने का आग्रह नहीं किया। अंत में जब सत्य जाने लगा तो राजा ने पूछने पर उसने कहा कि जहां लक्ष्मी, वैभव, धर्म, धैर्य और क्षमा का वास नहीं रहता वहां मैं भी नहीं रहता। राजा सत्य के पैरों में गिरकर कहने लगे मैं आपको नहीं जाने दूंगा। राजा का आग्रह सुनकर सत्य रुक गया। सत्य को न आता देख धर्म, धैर्य, सभी वापस राजा के पास आ गए। इस तरह सभी राजा के यहां शनिदेव के साथ रहने लगे।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।