जानिए रोशनी के पर्वत ‘कोहिनूर’ की अनोखी दास्तां

images (2)कोहिनूर 105 कैरेट (21.6 ग्राम) का एक दुर्लभ हीरा है। कहते हैं यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। वैसे ‘कोहिनूर’ का अर्थ होता है आभा या रोशनी का पर्वत।

यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, वर्तमान में ब्रिटिश शासन के अधिकार में है। जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को 1877 में भारत की साम्राज्ञी घोषित किया तबसे यह हीरा ब्रिटेन के पास है।

मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है । यह मान्यता अब से नहीं 13 वीं शताब्दी से है।इस हीरे का पहला प्रामाणिक वर्णन बाबरनामा में मिलता है । इसके अनुसार 1294 के आसपास यह हीरा ग्वालियर के किसी राजा के पास था। हालांकि तब इसका नाम कोहिनूर नहीं था।

इस हीरे को पहचान 1306 में मिली जब इसे पहनने वाले एक शख्स ने लिखा कि, ‘जो भी इंसान इस हीरे को पहनेगा वो इस संसार पर राज करेगा पर इसके साथ उसका दुर्भाग्य शुरू हो जाएगा।’

कई सम्राटों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिन्‍होंने भी इसे रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह सके। 14 वीं शताब्दी की शुरुआत में यह हीरा काकतीय वंश के पास आया । इसी के साथ 1083 ई. से शासन कर रहे काकतीय वंश के बुरे दिन शुरू हो गए।1323 में तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में हार के साथ काकतीय वंश समाप्त हो गया।

काकतीय साम्राज्य के पतन के पश्चात यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा ।16वीं शताब्दी के मध्य तक यह कई दिनों तक मुगल सल्तनत के पास रहा ।सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल में ही नजरबंद कर दिया।

1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया।नादिर शाह अपने साथ तख्ते ताउस और कोहिनूर हीरों को पर्शिया ले गया। उसने इस हीरे का नाम कोहिनूर रखा। 1747 ई. में नादिरशाह की हत्या हो गई और कोहिनूर हीरा अफगानिस्तान शहंशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया।

उनकी मौत के बाद उनके वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास पहुंचा। पर कुछ समय बाद मो. शाह ने शाह शुजा को अपदस्थ कर दिया। 1813 ई. में अफ़गानिस्तान के अपदस्‍थ शांहशाह शाह शूजा कोहिनूर हीरे के साथ भाग कर लाहौर पहुंचा। उसने कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रंजीत सिंह को दिया । इसके एवज में राजा रंजीत सिंह ने शाह शूजा को अफ़गानिस्तान का राज-सिंहासन वापस दिलवाया। इस प्रकार कोहिनूर हीरा वापस भारत आया।

कोहिनूर हीरा भारत आया और महाराजा रणजीत सिंह के पास रहा। कुछ सालों बाद महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई । अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया। इसी के साथ यह हीरा ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो जाता है।

कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन ले जाकर महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया जाता है तथा उसके शापित होने की बात बताई जाती है। महारानी के बात समझ में आती है और वो हीरे को ताज में जड़वा के 1852 में स्वयं पहनती हैं । यह वसीयत करती हैं कि इस ताज को सदैव महिला ही पहनेगी। यदि कोई पुरुष ब्रिटेन का राजा बनता है तो यह ताज उसकी जगह उसकी पत्नी पहनेगी।

कई इतिहासकारों का मानना है कि महिला के द्वारा धारण करने के बावजूद इसका असर खत्म नहीं हुआ । ब्रिटेन के साम्राज्य के अंत के लिए भी यही ज़िम्मेदार है। ब्रिटेन 1850 तक आधे बिशप पर राज कर रहा था ।इसके बाद उसके अधीनस्थ देश एक – एक करके स्वतंत्र हो गए।

 
 
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