इन ग्रंथों में मौजूद है मृत्यु का रहस्य

मृत्यु इस पृथ्वी पर रहस्यमयी और अमिट सत्य है। जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है, लेकिन क्या मृत्यु आने से पहले कोई आहट होती है? क्या ऐसा लगता है कि हमारी मौत नजदीक है? ऐसे कई सवाल हैं जो अपने आप में रहस्य हैं। सदियों से अनेकों विद्वानों ने अनेकों तरीकों से इन रहस्यों को सुलझाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वो आज भी पता नहीं कर पाए हैं कि आखिर मृत्यु के बाद क्या होता है?

after-death_20_01_2016हिंदू पुराणों के अनुसार यदि मृत्यु के समय मन शांत और तमाम इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट के मृत्यु होती है। यानी आपकी आत्मा बिना कष्ट के शरीर छोड़ देती है। ज्योतिष शास्त्र में मनष्य शरीर के सात चक्र बताए गए हैं।

पहला चक्र है मूलाधार चक्र, दूसरा लिंग चक्र, तीसरा नाभि चक्र, चौथा हृदय चक्र, पांचवा कंठ चक्र, छठा आज्ञा चक्र, सातवां चक्र है सहस्रसार चक्र। पुराणों में वर्णित है कि मृत्यु की आहट सबसे पहले मस्तिष्क में नहीं बल्कि नाभि में होती है।

यानी पहली आहट नाभि चक्र पर महसूस की जा सकती है। मृत्यु आने के सबसे पहले पता नाभि चक्र से जाना जा सकता है। यह नाभि चक्र एक दिन में नहीं टूटता है, इसके टूटने की क्रिया लंबे समय तक जारी रहती है और जैसे-जैसे चक्र टूटता जाता है मृत्यु के करीब आने के दूसरे कई लक्षण महसूस होने लगते हैं।

समुद्रशास्त्र में उल्लेखित है कि जब मृत्यु आती है तो हथेली में मौजूद रेखाएं अस्पष्ट और इतनी हल्की दिखाई देने लगती हैं। जिस व्यक्ति की मृत्यु हो रही है उसको अपने आस-पास कुछ सायों के मौजूद होने का अहसास होता रहता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने पूर्वज और कई मृत व्यक्ति नजर आते रहते हैं।

स्वप्नशास्त्र वर्णित है कि सपने कई बार भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं जैसे कि उसे अशुभ स्वप्न आने लगते हैं।

गरूड़ पुराण उल्लेखित है कि जब बिल्कुल मौत करीब आती है तो व्यक्ति को अपने करीब बैठा इंसान भी नजर नहीं आता है। ऐसे समय में व्यक्ति के यम के दूत नजर आने लगते हैं और व्यक्ति उन्हें देखकर डरता है। इसीलिए जब तक जीवन चक्र चलता रहता है तब तक सांसें सीधी चलती है। लेकिन जब किसी व्यक्ति की मृत्यु करीब आ जाती है तो उसकी सांसें उल्टी चलने लगती है।और इस तरह जीव के शरीर से आत्मा, कर्मों के फलों के अनुसार स्वर्ग और नर्क में जाती है। और व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए हैं तो वह हमेशा-हमेशा के लिए परमात्मा में विलीन हो जाती है। यानी आत्मा को मोक्ष मिलता है, जिससे कि वह जन्म-जन्मांतर के जन्मचक्र से मुक्त हो जाती है।

 
 
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