भगवान राम के जन्म से जुड़ी कथाओं में एक बड़ी ही रोचक कथा है। राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थी कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा।
ऋषि वशिष्ठ की सलाह
इनकी चिंता दूर करने के लिए एक दिन ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठी यज्ञ करवाएं। ऋंग ऋषि के अलावा इस यज्ञ को पूर्ण करने की योग्यता अन्य किसी में नहीं है। इस यज्ञ से पुत्र की प्राप्ति होगी।
ऋंग ऋषि कौन थे
ऋंग ऋषि का विवाह राजा दशरथ की इकलौती पुत्री शांता से हुआ था। इस नाते यह भगवान राम के जीजा जी हुए। शांता के काफी अनुनय-विनय करने पर ऋंग ऋषि ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठी यज्ञ करना स्वीकार कर लिया।
इसलिए ऋषि नहीं करना चाहते थे यज्ञ
इसका कारण यह था कि यज्ञ कराने वाले के जीवन भर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत सा धन देने का वचन दिया। ऋंग ऋषि ने यह धन अपनी पत्नी शांता को अपने पुत्र और कन्या का भरण-पोषण करने के लिए दे दिया।
ऋषि ने यज्ञ पूरा किया और अग्नि देव खीर लेकर प्रकट हुए। यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। यज्ञ पूरा होने के बाद फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए ऋंग ऋषि वन में चले गए।