श्रीराम ने ऐसे करवाई माता कौशल्या को ज्ञान की प्राप्ति

एक दिन माता कौशल्या अपने पुत्र भगवान श्रीराम के पास जाकर बोली, ‘ हे राम ! तुम मुझे कुछ उपदेश दो, जिससे की मुझे कुछ ज्ञान प्राप्त हो।’ माता के वाक्य सुनकर श्रीराम बोले, ‘ कल प्रात:काल आप गौशाला में जाकर वहां कुछ देर के लिए ठहरें और बछड़ों के वाक्यों को सुनकर भली-भांति विचार करें, उसके बाद मैं आपको उपदेश दूंगा। ‘दूसरे दिन सुबह जल्दी माता कौशल्या गौशाला में पहुंच गई। माता कौशल्या ने जब गौर से बछड़ों के वचन को सुना तो वे बार-बार ‘अहं मां’ कह रहे थे। माता इस बात पर विचार करने लगी कि यह बछड़े अपने शब्दों से आखिर मुझे क्या ज्ञान दे रहे हैं? कुछ देर तक मन को एकाग्र कर उन्होनें विचार किया तो उनका अज्ञान दूर हो गया। और श्रीराम के समीप आकर बोली, ‘ अब तुमसे उपदेश प्राप्त करने की कामना मेरी नहीं रही। मैने ज्ञान प्राप्त कर लिया है कि मैं तुमसे भिन्न कभी नहीं हूं। ‘ माता के वाक्य सुनकर श्रीराम ने कहा,’ मां ! बछडे के शब्दों से आपको क्या ज्ञान प्राप्त हुआ? विस्तार से बताइए। ‘

माता कौशल्या ने कहा कि, ‘ बछड़े के मुख से ‘अहं मां’ सुनकर कुछ क्षण मन में विचार कर यह समझ में आया कि बछड़े शिक्षा दे रहे हैं कि अरे प्राणियों ! ‘मैं’ इस शब्द को मत कहो। अहं शब्द देहपरक है। इसको परित्याग करते ही मेरा यह शरीर, मैं माता, यह मेरी ममात्मिका बुद्धी समाप्त हो गई। देह बुद्धी के नष्ट हो जाने पर फिर शेष क्या रह जाता है। दुख-सुख तो शरीर को प्राप्त होता है मुझे नहीं। यह शरीर रहे या नाश हो यह तो भोग के आश्रय पर है। मैं तो तुम्हारा अंश हूं। उपाधि से पृथक हो गई हूं। जिस प्रकार एक ही सूर्य भिन्न-भिन्न घड़ियों में उपाधि के कारण भिन्न-भिन्न दिखाई देता है। उसी प्रकार मैं भी तुमसे भिन्न नहीं हूं। ब्रह्म ही हूं।’ इस प्रकार माता के वाक्य सुनकर श्रीराम ने हंसते हुए कहा, ‘ माता ! आज तुम मुक्त हो गई। अब इस बात में कोई संदेह नहीं रहा। ‘

माता सीता की मदद से श्रीराम ने पास की थी ये परीक्षा
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