आप सभी जानते ही होंगे कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है और इस बार यह नवमी 17 नवंबर को मनाई जाने वाली है. कहा जाता है पूरे उत्तर व मध्य भारत में इस नवमी का खास महत्व होता है और इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ रखती हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं आंवला नवमी की कथा.
आंवला नवमी की कथा – कभी काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था और एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा. यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार किया लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही. एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हो गया और लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी. बाद में वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी.
इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है. वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई. तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी. जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी. कहते हैं इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई. उसके बाद से ही हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ गया.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
