तेरहवीं पर खाना खातें हैं तो आज ही छोड़ दें वरना…

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कहते हैं वास्तुशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है, जो व्यक्ति के आसपास के वातावरण के अनुसार ही उसकी सफलता और असफलता निर्धारित कर देता है. ऐसे में यह ज़िंदगी के हर पहलू पर अपनी छाप छोड़ देता है और इसका सबसे बड़ा असर देखने को मिलता है भोजन पर. आप सभी को बता दें कि महाभारत के अनुशासन पर्व में आए एक प्रसंग के अनुसार,’महाभारत युद्ध से पहले श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर संधि करने को कहा था और हर तरह से तर्क-वितर्क करने के बाद जब दुर्योधन टस से मस नहीं हुआ तो श्री कृष्ण वापिस जाने लगे थे.

तब दुर्योधन ने उन्हें भोजन करने के लिए कहा था लेकिन तब श्रीकृष्ण ने कहा, ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ इसका मतलब है कि ‘हे दुर्योधन, जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए लेकिन जब दोनों के दिल में दर्द और पीड़ा हो ऐसी स्थिती में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए.’ वहीं कहते हैं कि महाभारत की इस कथा को बुद्धिजीवियों ने मृत्युभोज यानि तेरहवीं से जोड़ा हुआ है और इसकी मानें तो जब किसी सगे-संबंधी की मृत्यु हो जाती है तो उस समय तेरहवीं पर आने वालों और जिनके घर में मौत हुई है, दोनों के मन में विरह का दर्द होता है.

बताया जाता है कि उस समय भोजन करवाने वाला और करने वाला दोनों ही दुखी होते हैं और इसके लिए श्रीकृष्ण कहते हैं,’ शोक में करवाया गया भोजन व्यक्ति की ऊर्जा का नाश करता है इसका मतलब है कि मृत्युभोज या तेरहवीं पर भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि उससे ऊर्जा का नाश होता है. वहीं गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ‘आत्मा अजर, अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता, आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है.’

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