भगवान अयप्पा : जिनके पिता शिव और माता विष्णु हैं

हमारी परंपरा कथा-प्रधान है। एक ही घटना के लिए दसियों कथाएं पुराणों में मिल जाएगी। फिर उत्तर-दक्षिण में भी कथाओं में अंतर नजर आता है। सबरीमला के भगवान अयप्पा के बारे में हम उत्तर भारतियों को ज्यादा जानकारी नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार अयप्पा भगवान के पिता शिव और मां विष्णु माने जाते हैं।

भगवान शिव और विष्णु की पौराणिक कथाओं पर गौर करें, तो दोनों ही देवताओं ने मानव कल्याण के लिए कई लीलाएं रचीं। भगवान विष्णु ने तो अपने बारह अवतारों के साथ हर बार मानव जीव की भलाई के लिए किसी न किसी उदाहरण को प्रस्तुत किया है। भगवान शिव ने भी अपने ध्यान, क्रोध और त्याग से हमें हर रूप में सतकर्म करने का संदेश दिया है। पर अब जरा गौर करें इस बात पर कि आखिर शिव और विष्णु की संतानें कौन है? भगवान विष्णु के कई अवतार हैं और उनके साथ उनके कई परिवार और संताने रहे। महादेव शिव का एक ही परिवार माना गया है, जिसमें गणेश और कार्तिकेय के रूप में उनकी दो संताने हैं। परन्तु यह पूरा सत्य नहीं है। शिव की तीसरी संतान भी है, इसे भगवान अयप्पा के रूप में पूजा जाता है। रहस्य तो इसमें निहित है कि शिव की तीसरी संतान को भगवान विष्णु ने जन्म दिया था। यानि दो पुरूषों की संतान!

अमृतपान के लिए विष्णु धरा मोहिनी रूप

पौराणिक साहित्य में दो पुरुष देवताओं की संतान होना आश्चर्य से भर देता है। इसके पहले कि आप किसी निर्णय पर पहुंचे और कोई अनचाही धारणा बनाएं उसके पहले जरा इस रहस्य को समझ लें! समुद्र मंथन की के दौरान जब अमृत सागर से बाहर आया तो देवाओं और राक्षसों के बीच उसके बंटवारे को लेकर विवाद पैदा हो गया था। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत का कलश उठा लिया। अमृत निकला तब उसके वितरण को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए विष्णु ने मोहिनी स्वरूप धारण किया था।

मोहिनी इतनी खूबसूरत थी कि राक्षसों का ध्यान अमृत के बर्तन से ज्यादा मोहिनी के रूप पर रहा। इसी दौरान छल हुआ और मोहिनी ने देवताओं को अमृतपान करवाया जबकि राक्षसों को साधारण जल पिलाती रही। पर मोहिनी का किरदार केवल समुद्रमंथन की कथा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके आगे एक और कथा है।

महिषासुर की बहन ने मांगा एक वरदान!

दरअसल तब महिषासुर नाम का एक राक्षस धरती पर वास कर रहा था। जिसने अपने अहंकार और अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी थीं। महिषासुर की अत्याचारों से परेशान देवताओं ने मदद के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना की। इसके बाद देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। पर महिषासुर के साथ हिंसा और अहंकार का अंत नहीं हुआ। महिषासुर की बहन महिषी अपने भाई की मृत्यु से बहुत दुखी थी। वह देवताओं से नाराज थी और इसीलिए उसने खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए घोर तप करना शुरू किया। उसने भगवान शिव की आराधना की। कई सालों तक लगातार की गई इस आराधना से महादेव प्रसन्ना हो गए। तब महिषी ने अपने लिए अमरता का वरदान मांगा।

महादेव ने कहा कि यह सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु तय है। वह चाहे तो अपनी मृत्यु की स्थिति तय कर सकता है परन्तु उसे टाल नहीं सकता। महिषी ने बीच का रास्ता निकाला। उसने वरदान मांगा कि मैं चाहती हूं कि मेरा वध शिव और विष्णु की संतान के द्वारा हो।

भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वरदान दे दिया। महिषी को लगा कि यह होना कभी संभव ही नहीं है। चूंकि दो पुरुषों का मिलन और फिर संतान उत्पत्ति हो ही नहीं सकती। इसी अहंकार के चलते उसने धरती से लेकर देवलोक तक हाहाकार मचा दिया। एक बार फिर देवता संकट में थे।

मोहिनी ने या शिव पुत्र को जन्म

इस बार फिर से सभी देवता भगवान शिव की शरण में पहुंचे। उन्होंने कहा कि आपने जो वरदान महिषी को दिया है उसका कोई तोड़ नहीं है। दो पुरुषों के मिलन से संतान की उत्पत्ति नहीं हो सकती। यही कारण है कि उसे हममें से कोई नहीं मार सकता। एक प्रकार से वह अमर हो चुकी है।

इसके बाद देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने की निवेदन की। हालांकि वे यह समझ रहे थे कि इस वरदान का कोई तोड़ हो ही नहीं सकता। परन्तु नियति में कुछ और ही लिखा था।

भगवान विष्णु ने अपने अवतार मोहिनी को कैलाश भेजा। मोहिनी को देखते ही भगवान शिव उन्हें पहचान गए। मोहिनी ने शिव के आगे प्रेम प्रस्ताव रखा। चूंकि शिव योगी थे और काम वासना कभी उनकी कमजोरियों में शामिल नहीं हुई इसलिए उन्होंने मोहिनी के साथ अपने मिलने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. परन्तु मोहिनी के प्रेम की लाज रखी।

शिव ने मोहिनी को अपना वीर्य, जिसे पारद कहा जाता है, वह दिया। इस तरह संबंध बनाएं बिना शिव और मोहिनी का मिलन हुआ। चूंकि मोहिनी विष्णु का अवतार थी इसलिए इसे शिव और विष्णु का मिलन भी कहा जाता है। पारद के प्रभाव से मोहिनी गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया गया।

पुराणों में इस पुत्र को ‘हरिहर’ या ‘मणिकांता’ के नाम से जाना गया। दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले भगवान अयप्पा ही ‘हरिहर’ हैं। अयप्पा शिव-विष्णु की संतान हैं। इसलिए उनमें दोनों देवताओं की शक्तियां समाहित थीं। आगे चलकर उन्हीं ने महिषी का वध करके देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त किया।

दक्षिण भारत पूजे जाते हैं भगवान अयप्पा

यह पौराणिक कथा दक्षिण भारत में काफी प्रचलित है, जबकि उत्तर और पूर्वी भारत में भगवान अयप्पा का जिक्र नहीं होता है। दक्षिण भारत के केरल राज्य में सबरीमाला मंदिर है। माना जाता है कि यहीं अयप्पा का वास है। इसके अलावा तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक राज्यों में लगभग हर गली-कूचे में भगवान अयप्पा के मंदिर मिलते हैं। भगवान अयप्पा के विषय में कहा जाता है कि उनकी पूजा तभी स्वीकार्य होती है जब व्यक्ति ब्रह्मचर्य का सख्त पालन करता है।

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