कैसे जन्मे भैरव, क्या जिम्मेदारी सौंपी भगवान शिव ने उन्हें…

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच विवाद छिड़ गया कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है? यह विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि सभी देवता घबरा गए। उन्हें डर था कि दोनों देवताओं के बीच युद्ध ना छिड़ जाए और प्रलय ना आ जाए… सभी देवता घबराकर भगवन शिव के पास चले गए और उनसे समाधान ढूंढ़ने का निवेदन किया।

जिसके बाद भगवान शंकर ने एक सभा का आयोजन किया जिसमें भगवान शिव ने सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि और साथ में विष्णु और ब्रह्मा जी को भी आमंत्रित किया। इस सभा में निर्णय लिया गया कि सभी देवताओं में भगवान शिव श्रेष्ठ है। इस निर्णय को सभी देवताओं समेत भगवान विष्णु ने भी स्वीकार कर लिया।

लेकिन ब्रह्मा ने इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया। वे भरी सभा में भगवान शिव का अपमान करने लगे। भगवान शंकर इस तरह से अपना अपमान सह ना सके और उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया।

 भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए।

भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वह श्वान (कुत्ते) पर सवार थे, उनके हाथ में एक दंड था और इसी कारण से भगवान शंकर को ‘दंडाधिपति’ भी कहा गया है। पुराणों के अनुसार भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था।

दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया।

शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।

आज भी काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। उनके अवतार को महाकाल के नाम से भी जाना जाता है। भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है।

अपने स्वरूप से उत्पन्न भैरव को भगवान शंकर ने आशीष दिया कि आज से तुम पृथ्वी पर भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाओगे। तुम्हारा हर रूप धरा पर पुजनीय होगा।

भैरव के आठ रूप
 1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव।

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