नवरात्रि का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है। देवी मां शक्ति अपने इस स्वरूप में एक जप माला लिए हुए हैं उन्होंने कमंडल भी धारण कर रखा है। माता की इस शक्ति में दुर्गा जी का प्रभाव है। दरअसल माता ने भगवान शंकर जी को पति स्वरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। तप के कारण माता को ब्रह्मचारिणी का नाम दिया गया।
दरअसल तप के दौरान वे ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली हो गई थीं। माता की आराधना से तप, त्याग, वैराग्य संयम की प्राप्ति होती है। माता प्रसन्न होकर जीवन के सारे सुख श्रद्धालुओं को दे देती हैं। माता जी ने पहले एक हजार वर्ष तक फलाहार पर रहकर व्रत किया। इसके बाद वे शाक का सेवन कर तप करने लगीं।
उन्होंने न तो बारिश की चिंता की और न ही धूप की परवाह की। बाद में केवल बिल्व पत्र का सेवन कर माता ने तप किया। ऐसे में मारता ने टूटे हुए बिल्व का सेवन कर अपनी तपस्या की। बात में माता ने पति स्वरूप में भगवान शिव जी को प्राप्त किया।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।