चाणक्य की एक श्रेष्ठ विद्वान होने के साथ साथ एक योग्य शिक्षक भी थे. चाणक्य का संबंध अपने समय के विश्व प्रसिद्ध तक्षशिला विश्व विद्यालय था. चाणक्य ने तक्षशिला विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी और बाद में वे इस विश्व विद्यालय में आचार्य नियुक्त हुए. जहां पर चाणक्य ने विद्यार्थियों को शिक्षित करने का कार्य किया. चाणक्य स्वयं एक योग्य आचार्य थे और उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा विद्यार्थियों को शिक्षित करने में व्यतीत हुआ इसलिए उन्हें छात्र जीवन का अच्छा अनुभव था.
चाणक्य का मानना था कि किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि योग्य संतान की प्राप्ति होती है. संतान योग्य बने और जीवन में श्रेष्ठ कार्य करे, ऐसी कामना हर माता पिता के भीतर होती है. लेकिन ये कामना सभी की पूर्ण नहीं होती है. संतान को योग्य बनाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है और कई प्रकार के सुखों का त्याग करना होता है. संतान को योग्य बनान है तो कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए.
संस्कारों की जानकारी दें
चाणक्य के अनुसार शिक्षा का महत्व तभी है जब छात्र को संस्कारों के बारे में भी पूर्ण ज्ञान हो. परिवार और माता पिता एक तरह से संतान के लिए प्रथम पाठशाला होते हैं. बच्चा अपने जीवन में माता पिता की आदतों से बहुत कुछ सीखता है. बच्चे अपने आसपास की चीजों से अधिक सीखते हैं. इसलिए माता पिता को बच्चों में अच्छे संस्कार डालने चाहिए. संस्कारों से युक्त संतान ही श्रेष्ठ बनती है.
बच्चों के सामने न करें गलत आचरण
चाणक्य के अनुसार बच्चों पर घर के वातावरण का बहुत असर होता है. माता पिता जब बच्चों के सामने गलत आचरण प्रस्तुत करते हैं तो उसका बहुत ही बुरा प्रभाव बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ता है. इसलिए बच्चों के सामने माता पिता को सदैव आर्दश बर्ताव करना चाहिए.
अच्छी आदतों को अपनाएं
चाणक्य के अनुसार माता पिता को स्वयं अच्छी बातों को अपनाना चाहिए. जब माता पिता अच्छी आदतों का अनुसरण करेंगे तो संतान भी उन आदतों को अपनाती है. घर के मौहाल को दूषित न होनें दें.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।