आज शुक्र प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा होती है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी को आता है। ऐसी मान्यता है कि शुक्र प्रदोष करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में खुशहाली आती है।
आज शुक्र प्रदोष व्रत रखा जा रहा है, जो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, और जब यह शुक्रवार को पड़ता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से धन, ऐश्वर्य और मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
इस शुभ अवसर पर प्रदोष काल में पूजा करना और कथा का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है। कथा के पाठ से ही पूजा पूर्ण मानी जाती है, तो आइए पढ़ते हैं –
शुक्र प्रदोष व्रत कथा
एक बार की बात है, अंबापुर गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए वह भीख मांगकर अपना जीवन जी रही थी। एक दिन जब वह लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिले जो अकेले थे। बच्चों को देखकर उसका दिल भर गया और वह उन्हें अपने घर ले आई। जैसे-जैसे बच्चे बड़े हुए, एक दिन ब्राह्मणी उन्हें लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई और उनके माता-पिता के बारे में पूछा। ऋषि ने बताया, “ये दोनों विदर्भ देश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश ने उनके राज्य पर हमला करके उनका सब कुछ छीन लिया है।”
यह सुनकर ब्राह्मणी दुखी हो गई और उसने ऋषि से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे उन्हें उनका राजपाट फिर से वापस मिल सके? ऋषि शांडिल्य ने उसे प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने पूरे मन से यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव से बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती नाम की एक राजकुमारी से हुई। दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया।
इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी भी सुखी जीवन जीने लगी और भोलेनाथ की बहुत बड़ी साधक बन गई।