भागवत गीता को दुनिया का सबसे बड़ा लाइफ मैनेजमेंट ग्रंथ माना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल युद्ध जीतने के तरीके बताए, बल्कि यह भी समझाया कि एक आम इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किन गलतियों के कारण दुखों के दलदल में फंस जाता है। गीता के एक अध्याय में श्रीकृष्ण ने तीन ऐसी आदतों का जिक्र किया है, जिन्हें उन्होंने ‘नरक का द्वार’ कहा है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
हैरानी की बात यह है कि आज के दौर में बढ़ता हुआ तनाव, डिप्रेशन और आपसी झगड़ों की सबसे बड़ी वजह यही तीन आदतें हैं।
अनियंत्रित काम (बेहिसाब इच्छाएं)
श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘काम’ यानी इच्छाएं जीवन के लिए जरूरी हैं, लेकिन जब ये बेकाबू हो जाएं तो इंसान को अंधा कर देती हैं। आज के ‘कंज्यूमर कल्चर’ में हमें हर वक्त कुछ नया चाहिए, बड़ी गाड़ी, महंगा फोन, ऐशो-आराम। जब ये इच्छाएं जुनून बन जाती हैं, तो इंसान सही और गलत का फर्क भूल जाता है। वह अपनी मर्यादाएं तोड़ने लगता है और यही उसके पतन की शुरुआत होती है।
क्रोध (गुस्सा): विवेक का दुश्मन
आजकल हम छोटी-छोटी बातों पर सड़क पर लड़ने लगते हैं या घर में अपनों पर चिल्ला देते हैं। श्रीकृष्ण के अनुसार, क्रोध इंसान की बुद्धि को खा जाता है। जब हमें गुस्सा आता है, तो हमारी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। गुस्से में लिया गया एक गलत फैसला या बोला गया एक कड़वा शब्द पूरे जीवन की मेहनत पर पानी फेर सकता है। गीता हमें सिखाती है कि शांति ही वह रास्ता है जो हमें नरक जैसी मानसिक स्थिति से बाहर निकाल सकता है।
लोभ (लालच): कभी न खत्म होने वाली भूख
तीसरा द्वार है ‘लोभ’। आज भ्रष्टाचार, धोखेबाजी और रिश्तों में खटास की सबसे बड़ी वजह लालच है। इंसान के पास जितना आता है, उसे कम ही लगता है। लोभी व्यक्ति कभी वर्तमान का आनंद नहीं ले पाता, वह हमेशा ‘और’ की तलाश में भागता रहता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि लोभ वह जंजीर है जो आत्मा को जकड़ लेती है और इंसान को कभी सुकून नहीं मिलने देती।
गीता के किस अध्याय में है इसका जिक्र
श्रीमद्भगवद्गीता के 16वें अध्याय में इस श्लोक का जिक्र किया गया है। इस अध्याय का नाम ‘दैवासुरसम्पद्विभागयोग’ है। इस अध्याय में भगवान ने दैवी (अच्छे) और आसुरी (बुरे) स्वभाव वाले व्यक्तियों के लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया है।
विशेष रूप से श्लोक संख्या 21 में इसका वर्णन मिलता है:
“त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: | काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ||”
इसका सरल अर्थ यह है: “काम (इच्छा), क्रोध (गुस्सा) और लोभ (लालच)- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं जो आत्मा का नाश करने वाले (यानी उसे नीचे गिराने वाले) हैं। इसलिए, हर व्यक्ति को इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।”
कैसे बचें इन द्वारों से?
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि जो व्यक्ति इन तीनों विकारों को त्याग देता है, वह अपनी आत्मा का कल्याण करता है और अंत में परम गति (सुख और शांति) को प्राप्त करता है। याद रखिये, नरक कहीं बाहर नहीं, हमारी अपनी बुरी आदतों में ही छुपा है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।