अमृत के समान परम पावन नदी क्षिप्रा के तट पर बसा है उज्जैन। गुरु जब सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है तब उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ लगता है। सूर्य और गुरु दोनों सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन नासिक में गोदावरी नदी के तट पर होता है। वर्ष 2016 में सिंहस्थ २२ अप्रैल को पहले स्नान से आरंभ होकर २१ मई को अंतिम स्नान के साथ विश्वा के इस सबसे बड़े मेले का समापन होगा।
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ज्जैन जिसे सदियों पहले अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि नामों से जाना जाता था। यह शहर कभी राजा विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी, जिसे कालिदास की नगरी के नाम से भी पहचाना जाता है।
यहां हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इसी पवित्र नगरी में स्थित है। लोकप्रिय पवित्र स्थल होने के अलावा उज्जैन बौद्ध संस्कृति के पहलुओं को भी दर्शाता है। उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर, श्री बडे गणेश मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, महाकाल मंदिर आदि कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं का एक दिन होता है, इसलिए हर बारह वर्ष पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। ऐसी मान्यता है कि 144 वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है। इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयाग यानी इलाहाबाद का विशेष महत्व है इसलिए हर 144 वर्ष बाद यहां महाकुंभ का आयोजन होता है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।