कहा जाता है कि इस सृष्टि की रचना आदि देवों द्वारा की गई है। आदि देव जिन्होंने समय समय पर विभिन्न स्वरूपों को अपनी शक्ति से अवतरित किया। ऐसे आदि देव भगवान भोलेनाथ यानि शिव कहलाते हैं। शिव में ही सस्त सृष्टि का सार है और सृष्टि के कण – कण में शिव का वास है। शिव अपनी शक्ति के साथ इस समूचे ब्रह्मांड में निवास करते हैं। शिव का ऐसा ही धाम है कांगड़ा। हिमालय की वादियों से आच्छादित शिमला से करीब 181 किलोमीट दूर प्रतिष्ठापित है शिव का यह मंदिर। इसी कांगड़ा के समीप है काढगड़ बस शिव को पाने की सारी इच्छाऐं यहां आकर साकार रूप ले लेती हैं। यहां भगवान शिवलिंग स्वरूप में प्रतिष्ठापित हैं।
मान्यता है कि एक बार विभिन्न देवी – देवताओं के बीच स्वयं को श्रेष्ठ बताने को लेकर वाद चला। इस दौरान जब सभी आपस में विवाद करने लगे तो अचानक आग स्तंभ प्रकट हुआ। भगवान शिव ने अपनी शक्ति अर्थात माता पार्वती के साथ आग स्तंभ के माध्यम से देवताओं के विवाद को शांत किया। तब देवता इस आग स्तंभ का पूजन करने लगे और क्षमा मांगी। इसके बाद यह आग स्तंभ शिवलिंग स्वरूप में प्रतिष्ठापित हो गया। तभी से इसका पूजन अर्चन किया जाने लगा।
यहां आने वाले के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं तो दूसरी ओर सभी मनोकमानाओं की पूर्ति होती है। विशेषकर यहां सोमवार और श्रावण मास में श्रद्धालु उमड़ते हैं। श्रावण मास में और सर्दियों में यहां की सुंदरता का वर्णन ही नहीं किया जा सकता। यहां आकर श्रद्धालु साक्षात् स्वर्ग का अनुभव करने लगते हैं। शिव को जल और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और श्रद्धा से शीश नवाकर अपनी मनोकामना कही जाती है। यहां आने वाले के समस्त पान नष्ट हो जाते हैं।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
