ऐसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत, जलाभिषेक के लिए भक्त जाते हैं हरिद्वार

सावन में कांवड़ यात्रा का बहुत महत्व है। हर साल लाखों यात्री अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए इस पावन यात्रा को पैदल चलकर पूरा करते है। सावन के महीने में शिव भक्तों के अंदर एक अलग तरह का जोश नजर आता है।

कहते हैं सावन के महीने में भगवान शिव अपने ससुराल यानी राजा दक्ष के यहां रहकर तीनों लोक का ध्यान रखते हैं। यही वजह है कि लोग भगवान शिव पर जल अभिषेक करने के लिए हरिद्धार जाते हैं।

17 जुलाई से इस साल कांवड यात्रा की शुरुआत होने जा रही है। लाखों की संख्या में भक्त अलग-अलग जगहों से दर्शन करने के लिए जाते हैं।

समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकल रहा था उससे पूरे संसार का नाश हो जाता। भगवान शंकर संसार की रक्षा करने के लिए खुद विष का सेवन कर लिया जिससे संसार तो बच गया,लेकिन भगवान का शरीर जलने लगा तब देवताओं ने उन पर जल डालना शुरू किया। जिसके बाद से ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। इसके बाद शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया था।

सावन का पूरा महीना ही भोलेनाथ के पूजा-पाठ के लिए होता है। ऐसे में अगर आप मन से भोले बाबा की पूजा- अर्चना करते हैं तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भोलेनाथ आपको मनचाहा फल देते हैं।

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