प्रकृति की गोद में विराजित हैं गणपतिपुले के श्री विनायक

कोंकण को प्रकृति ने अपना उपहार दिया है। लगता है कोंकण को भगवान ने स्वयं ही अपने हाथों से बनाया है। संभवतः यह क्षेत्र देव शिल्पी विश्वकर्मा ने बनाया हो। तभी तो यहां हरियाली, समुद्री तट और पहाडि़यां नज़र आती हैं। इसी कोंकण की गोद में विराजते हैं भगवान श्री गणेश। जी हां, भगवान श्री गणेश के इस धाम को श्री गणपतिपुले के नाम से जाना जाता है। कोंकण तट का यह बहुत ही सुंदर और मनोरम बीच है। यहां प्रेमियों के ही साथ शांत वातावरण चाहने वाले तीर्थयात्री भी आते हैं।

यहां प्रतिष्ठापित श्री गणेश जी की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है। यह मूर्ति स्वयंभू है। श्री गणेश जी के मंदिर सदैव श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां दर्शनमात्र से श्रद्धालुओं को अपार सफलता मिलती है। श्री गणपति पुले पहुंचने वाले मन में अगाध श्रद्धा लिए यहां आते हैं। यह क्षेत्र अष्टविनायक दर्शन का एक प्रमुख स्थल है। यहां पर सुंदर बीच है और सुंदर वनस्पतियां यहां पर हैं।

इस मंदिर में श्री गणेश चतुर्थी, बुधवार और अन्य समय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। भगवान श्री गणेश यहां पर अपनी कृपा बरसाते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु बप्पा को दुर्वा, मोदक, लड्डू चढ़ाते हैं। यहां पर विशेष प्रकार के कोंकणी मोदक भी मिलते हैं। भगवान श्री गणेश सभी की मनोकामना को दर्शन मात्र से पूर्ण कर देते हैं।

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