इस राक्षस को खत्म करने के लिए श्री हरी ने अपने मुख पर धारण की थी पृथ्वी

हिंदू पुराण के मुताबिक़ हर एक दिन किसी न किसी भगवान को अर्पित माना जाता है. ऐसे में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा का दिन कहते हैं. वैसे तो किसी भी भगवान को याद करने के लिए किसी दिन की आवश्यकता नहीं होती है, हमे हर दिन भगवान का स्मरण करना ही चाहिए. ऐसे में कहते हैं भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूरी हो जाती है और इसी के साथ श्री हरि का केले के रूप में पूजन करना शुभ माना जाता है. वहीं भगवान विष्णु से जुडी कई कहानियां हैं जो आप सभी ने सुनी या पढ़ी होंगी लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस पौराणिक कथा के बारे में जिसमे भगवान ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी को अपने मुख पर धारण किया था और राक्षस का संहार किया था. आइए जानते हैं उस कथा के बारे में.

कथा – भगवान के बैकुंठ धाम में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल थे. एक बार सनकादि योगीश्वर श्री लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु के दर्शन की अभिलाषा लेकर बैकुंठ धाम गए. महाबली जय और विजय ने उन्हें बीच में ही रोक उनके साथ अभद्र व्यवहार किया. इससे सनकादि ने उन्हें श्राप दे दिया-‘द्वारपालों, तुम दोनों भगवान के इस धाम का त्याग करके भूलोक में जाकर असुर रूप में जन्म लो.” श्राप के प्रभाव से कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति के हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दो महाबलशाली पुत्र हुए. दोनों की प्रवृत्तियां घोर आसुरी थीं तथा उन्होंने कठोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर असीम शक्तियां भी अर्जित कर लीं थीं.

हिरण्याक्ष शक्तियों के दम पर चारों ओर आतंक फैलाने लगा,उसका शरीर कितना भी बड़ा हो सकता था. उसने अपनी हज़ारों भुजाओं से पर्वत, समुद्र, द्वीप और सम्पूर्ण प्राणियों सहित इस पृथ्वी को उखाड़ लिया व सिर पर रखकर रसातल में ले जाकर छुपा दिया . हिरण्याक्ष के आतंक से समस्त देवता,धरतीवासी हाहाकार कर उठे. दैत्य ने स्वर्गाधिपति देवराज इंद्र के लोक को भी जीत लिया और जल देवता वरुण देव को भी युद्ध के लिए ललकारा . हिरण्याक्ष की बात सुन वरुणदेव बोले-‘इस जगत में भगवान नारायण से अधिक बलशाली कोई नहीं है. यदि तुम अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते हो तो भगवान विष्णु को हराकर बताओ.”यह सुनकर हिरण्याक्ष क्रोधित हो उठा और श्री हरि की खोज में इधर-उधर भागने लगा. तभी उसे नारद मुनि ने बताया कि श्री हरि ने ब्रह्माजी की नासिका से वराह अवतार लिया है.

उनका शरीर नीले रंग का पर्वत के सामान कठोर है, तथा शरीर पर कड़े बाल व बाण के समान पैने खुर हैं . नेत्रों से भयंकर तेज निकल रहा है. वे सभी दिशाओं को कंपा देने वाली गर्जना करते हुए पृथ्वी को रसातल से बाहर निकालकर अपने दांतों पर उठाकर बहार ला रहे हैं. यह सुनकर हिरण्याक्ष श्री विष्णु के समीप रसातल में जा पहुंचा. उसने देखा कि एक विशालकाय वराह दांतों पर पृथ्वी को उठाते हुए जा रहा है. दैत्य ने वराह भगवान को ललकारते हुए उन पर अपनी गदा से प्रहार किया. दोनों में काफी देर तक भीषण युद्ध के उपरांत विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से उस अधम दैत्य का वध कर दिया . इसके बाद भगवान वराह ने पहले की ही भांति पृथ्वी को रसातल से बाहर लाकर पुनः शेषनाग के ऊपर स्थापित कर तीनों लोकों को भयमुक्त किया.

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