जानिए हिन्दू धर्म में मुंडन का विधान, क्या हैं इसके शारीरिक और धार्मिक लाभ

हिन्दू धर्म में मुंडन का विधान है। यह सोलह मुख्य संस्कारों में आठवां संस्कार है। इस संस्कार में शिशु के सिर से बाल हटाए जाते हैं। यह संस्कार एक साल के बाद किया जाता है। यह संस्कार चूड़ाकर्म के नाम से भी जाना जाता है। इस संस्कार के पहले अन्नप्राशन संस्कार होता है, जिसमें शिशु को अन्न खिलाया जाता है। हालांकि, इस संस्कार को लेकर लोगों के मन में कल्मष ( सवाल ) पैदा होने लगे हैं कि क्या यह जरूरी है? अगर आपके मन में भी मुंडन संस्कार को लेकर कोई सवाल है तो आइए जानते हैं कि मुंडन के वैज्ञानिक ( शारीरिक ) और धार्मिक लाभ क्या हैं-

डॉक्टर हमेशा शिशुओं को सुबह-सुबह धूप में नंगे बिठाने या लिटाने की सलाह देते हैं। इस बारे में उनका कहना होता है कि इससे शिशुओं को विटामिन डी प्राप्त होता है, जो कि उनकी सेहत के लिए बहुत जरूरी है। अगर शिशु के सिर से बाल हटा दिए जाए तो उन्हें विटामिन डी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। इसके साथ ही डॉक्टर का कहना है कि मुंडन करने से बालों का विकास सही से होता है।

जबकि धार्मिक मान्यता है कि हिन्दू धर्म में 84 लाख योनियों के बाद आत्मा को मानव तन प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक योनी का मानव जन्म पर अपना प्रभाव पड़ता है। इन प्रभावों से शिशु को बचाने के लिए मुंडन किया जाता है।

इस संस्कार को करने से शिशु को पिछली योनियों से मुक्ति मिल जाती है और शिशु का शरीर शुद्ध हो जाता है। कुछ जानकारों का ऐसा भी कहना है कि मुंडन करने से शिशु के मस्तिष्क का विकास सही ढंग से होता है। मुंडन संस्कार में कुछ रीति-रिवाजों को पूरा करने के बाद शिशु के सिर से बाल हटाए जाते हैं। इसलिए यह संस्कार किया जाता है।

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