अक्षयकुमार रावण का सबसे छोटा पुत्र था। उसकी वीरता देवों के समान थी। वह अपने पिता रावण की आज्ञा से आठ घोड़ों वाले, कनकमय रथ पर सवार होकर हनुमानजी से लड़ने गया था। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में इस प्रसंग का बहुत ही अद्वितीय तरीके से वर्णित किया है। उन्हीं के शब्दों में, ‘जिस रथ पर अक्षय कुमार बैठा है वह उसे तप के बल से प्राप्त हुआ था। यह रथ सोने का बना था। हनुमानजी को देखकर गुस्से से अक्षय कुमार की आंखों लाल हो गईं। अक्षय ने हनुमानजी पर कई बाण छोड़े। हनुमानजी अक्षय की वीरता देखकर प्रसन्न थे। दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है। हनुमान जी अक्षय के शौर्य को देखकर विस्मित थे। उन्हें दुःख था, कि ऐसे वीर का उन्हें वध करना पड़ेगा। अक्षय का बल बड़ता जा रहा था। अतः हनुमानजी ने अक्षय कुमार को मारने का निर्णय कर लिया। वह वायु की तेज गति से उसके कनकमय रथ पर कूदे और रथ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। दोनों के बीच द्वंद युद्ध हुआ और अंततः अक्षय कुमार मृत्यु के मुख में समा गया।’ ब्रह्मास्त्र था हनुमानजी के लिए बेअसर रावण ने जब अपने पुत्र की मौत का समाचार सुना तो वह दुःखी हो गया। उसने अपने पुत्र मेघनाद से कहा, ‘जिस वानर ने अक्षय का वध किया है। उसे मेरे सामने लाओ। मेघनान रथ पर बैठा और हनुमानजी से युद्ध करने चल पड़ा। उसका रथ चार सिंह खींच रहे थे।’ हुनुमानजी, मेघनाद को देखकर काफी प्रसन्न हुए। मेघनाद ने हनुमानजी पर बाणों की वर्षा कर दी। मेघनाद ने काफी प्रयत्न किए लेकिन वो हनुमानजी को हरा नहीं सका। तब मेघनाद ने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। यहां रखी गई लंका दहन की नींव हनुमानजी को ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था कि ब्रह्मास्त्र का उन्हें एक मुहूर्त में ही बंधन बना सकता है। इसलिए वह घबराए नहीं। इसको देखते हुए वह ब्रह्मास्त्र में ही बंधे रहे। मेघनाद खुश था। लेकिन हनुमानजी लंका जाना चाहते थे लंका का दहन करने के लिए उन्हें यह अवसर मिला भी। इधर, मेघनाद के सैनिक हनुमानजी को लंका ले गए। और फिर लंका जाकर हनुमानजी ने लंका दहन किया।
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