जैसा की हम सभी जानते है की शनि एक क्रूर ग्रह है। किसी भी व्यक्ति के ऊपर इसकी टेढ़ी नजर पड़ जाए तो उस व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का भंडार लग जाता है। इसकी चाल धीमी है इसलिए जातकों के जीवन पर इसका असर लंबे समय तक रहता है। जन्म कुंडली में शनि का स्थान यह बताता है कि उसके प्रभाव जातक के ऊपर शुभ पड़ेंगे या अशुभ। क्योंकि यदि कुंडली शनि का स्थान शुभ नहीं होता है तो यह जातक की कुंडली में शनि दोषों का निर्माण करता है जो किसी व्यक्ति के लिए समस्याकारक होता है। कुंडली में 12 भाव होते हैं। ये भाव व्यक्ति के संपूर्ण जीवन की व्याख्या करते हैं। इन भावों में शनि कहां शुभ और कहां अशुभ होता है, ये जानने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले कुंडली का चौथा भाव जिसे सुख भाव कहते हैं इस भाव में शनि का होना अच्छा नहीं माना जाता है। यानि यहां शनि की उपस्थिति से व्यक्ति के सुखों में ग्रहण लग जाता है।
शनि का राहु और मंगल के साथ होने से दुर्घटना का प्रचंड दुर्योग बनता है। ऐसी स्थिति में जातक को संभल कर वाहन चलाना चाहिए और यात्रा करते समय भी सावधानी बरतनी चाहिए । शनि का सूर्य के साथ संबंध होने से कुंडली में दोष पैदा होता है। इस दोष के कारण पिता-पुत्रों के संबंध खराब रहते हैं। दोनों के बीच मतभेद रहता है। असल में शनि देव सूर्य देव के पुत्र हैं और दोनों के बीच शत्रुता का भाव है। शनि का वृश्चिक राशि या चंद्रमा से संबंध होने पर कुंडली में विष योग का निर्माण होता है। इस दोष के कारण व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में असफल होता है। शनि यदि अपनी नीच राशि मेष में हो तो भी जातक को इसके नकारात्मक फल प्राप्त होते हैं।
शनिवार के दिन करें शनि दोषों से बचने के उपाय
प्रत्येक शनिवार को शनि देव का उपवास रखें।
शाम को पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
शनि के बीज मंत्र ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः, का १०८ बार जाप करें।
काले या नीले रंग के वस्त्र धारण करें।
भिखारियों को अन्न-वस्त्र दान करें।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।