आज शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन है और इस दिन माँ के पांचवे स्वरूप का पूजन होता है जो स्कंदमाता है। वैसे आप सभी को हम यह भी बता दें कि 24 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी एक ही दिन मनाई जाने वाली है और इन दिन मां महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। वैसे इन तिथियों पर कन्याओं को घरों में बुलाकर भोजन कराया जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं कन्या पूजन की धार्मिक मान्यता और कब से शुरू हुई कन्या पूजा। आइए बताते हैं।
कन्या पूजन की धार्मिक मान्यता – कहा जाता है सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौदुर्गा, व्यवस्थापक रूपी 9 ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली 9 प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जी दरअसल जैसे किसी देवता की मूर्ति पूजा करने से हम संबंधित देवता की कृपा पा लेते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करने के बाद साक्षात् भगवती की कृपा अपने नाम कर सकते हैं। कहा जाता है कन्याओं का पूजन करने से हर मनोकामना की पूर्ति होती है। जी दरअसल ऐसा माना जाता है कि नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजना चाहिए और ऐसा करने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। वैसे इस दौरान अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्यायों को भोग लगाकर दक्षिणा देने से ही माता दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा कर देती हैं।
आइए अब जानते हैं कबसे शुरू होती है कन्या पूजा- हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना करते हैं और घर में मां दुर्गा को विराजित करते हैं। इस दौरान अखंड ज्योत जलाई जाती है और पूरे नौ दिनों तक व्रत रखा जाता है। वहीँ हर दिन मां के अलग रूप की पूजा भी करते हैं। उसके बाद नवरात्रि की सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू होता है। कहा जाता है एक भक्त ने इसकी शुरुआत की थी और उसके सभी दुःख माँ ने हर लिए थे। तभी से यह परम्परा बन गई।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।