भगवान शिव का अनन्य भक्त था विश्रवा ऋषि का पुत्र दशानन रावण : धर्म

दशहरे का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रुप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन दशमी तिथि को रावण दहन किया जाता है। इस बार दशहरा 25 अक्तूबर को मनाया जाएगा। रावण के दस सिर होने के कारण उसे दशानन भी कहते थे। आज भी रावण के पुतले में दस सिर बनाए जाते हैं।

रावण के पिता विश्रवा ऋषि थे जिसके कारण रावण भी बहुत ज्ञानी विद्वान था। वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था। इसका एक उदाहरण मिलता है जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर काटकर अर्पित कर दिए थे। जहां पर रावण ने भगवान शिव को अपने सिर काटकर अर्पित किए थे। वह स्थान आज भी स्थित है यहां पर भारी सख्यां में श्रद्धालु आते हैं।

रावण को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता था। एक बार उसने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। उसके बाद उसने एक-एक कर अपने सिर काटकर भगव न शिव को अर्पित करने आंरभ कर दिए, नौ सिर काटने के बाद रावण जब अपना दसवां सिर भी काटने वाला था तभी शिव जी प्रकट हो गए। जहां पर रावण नें अपने शीश काटकर शिव जी को अर्पित किए थे, वह स्थान चमोली में बैरासकुंड के नाम से जाना जाता है।

बैरासकुंड चमोली जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर आज भी भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि यह मंदिर बहुत पौराणिक है। यही वह स्थान है जहां लंकाधिपति ने शिव जी के दर्शन के लिए कठोर तप किया था।

इस स्थान पर एक कुंड बना हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी कुंड में रावण ने अपने सिरो को काटकर डाला था। इसमें बारह महीने पानी भरा रहता है।

बैरासकुंड मंदिर में स्थापित  शिवलिंग का ऊपरी भाग कटा हुआ है। इसके बारे में कहा जाता है कि दशानन इस शिवलिंग को अपने साथ लंका लेकर जाना चाहता था, किंतु बहुत प्रयास करने के पश्चात भी वह इसे अपने मूल स्थान से उखाड़ नहीं पाया।

जिसके बाद उसने अपनी  तलवार से इसका ऊपरी हिस्सा काटकर अपने साथ ले जाना चाहा, परंतु सारी कोशिशे करने के पश्चात भी रावण शिवलिंग को बैजनाथ से आगे नहीं ले जा पाया। जिसकी वजह से वह शिवअंश वहीं स्थापित हो गया। और आज भी स्थापित है।

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