एकादशी तिथि का सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है. एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है. साल 2020 की आखिरी एकादशी इस बार 25 दिसंबर को है और इसे मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस दिन चावल नहीं खाए जाते हैं. जो लोग एकादशी का व्रत नहीं रखते उन्हें भी चावल नहीं खाने चाहिए. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि एकादशी पर चावल न खाने के पीछे क्या कारण हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया था. महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समा गया. कहा जाता है कि जिस स्थान पर उनका अंश पृथ्वी में समाया वहां पर जौ और चावल कि उत्पत्ति हुई. महर्षि ने जिस दिन अपने शरीर को त्यागा उस दिन एकादशी थी.
इसलिए एकादशी तिथि के दिन जौ और चावल खाने को वर्जित माना गया है. मान्यात है कि जो लोग इस दिन चावल का सेवन करते हैं वे ऋषि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करते हैं.
एक वर्ष में 24 एकादशी तिथि
हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष नाम के दो पक्ष होते हैं. दोनों पक्षों की ग्याहरवीं तिथि ही एकादशी तिथि कहलाती है. इस हिसाब से एक वर्ष में 24 एकादशी तिथि पड़ती हैं. लेकिन जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है, उस वर्ष एकादशी की संख्या बढ़ जाती है. उस वर्ष 26 एकादशी तिथि पड़ती है.