आइये जानें प्रकाश पर्व के रूप में क्यों मनाई जाती है गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती

गुरु गोविंद सिंह जी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं कवि भी माना जाता है। इनके त्याग तथा वीरता की अभी तक मिसाल दी जाती है। उनकी सबसे बड़ी खासियत उनकी बहादुरी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती इस वर्ष 20 जनवरी को है। इस दिन को सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के तौर पर मनाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है। अरदास, भजन, कीर्तन के साथ सभी माथा टेकते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी के लिए यह शब्द उपयोग किए जाते हैं, सवा लाख से एक लड़ांऊ? उनके मुताबिक, शक्ति एवं वीरता के सिलसिले में उनका एक सिख सवा लाख व्यक्तियों के समान है।

गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। इनका जन्म माता गुजरी जी तथा पिता श्री तेगबहादुर जी के यहां हुआ था। उस वक़्त गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचन के अनुसार, बालक का नाम गोविंद राय रखा गया तथा सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छककर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए।

खालसा पंथ की स्थापना: गुरु गोविंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवि, भक्त और आध्यात्मिक शख्सियत वाले थे। सन् 1699 में 13 अप्रैल बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे अहम घटना मानी जाती है। खालसा मतलब खालिस (शुद्ध) जो मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हो तथा समाज के प्रति पूरी प्रकार से समर्पण का भाव रखता हो।

ऐसे हुई पंज प्यारे की स्थापना: सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके समक्ष पूछा, कौन अपने सिर का बलिदान देना चाहता है? उसी वक़्त एक स्वयंसेवक इस बात के लिए मान गया तथा गुरु गोविंद सिंह उसे दूसरे तंबू में ले गए तथा कुछ समय पश्चात् वापस लौटे एक खून लगी हुई तलवार के साथ। गुरु ने फिर से उस भीड़ के व्यक्तियों से वही प्रश्न पूछा तथा उसी तरह एक और शख्स राजी हुआ और उनके साथ गया। फिर वह खून से सनी तलवार लेकर बाहर आए, इसी तरह जब पांचवा स्वयंसेवक उनके साथ तंबू के अंदर गया तो कुछ समय पश्चात् गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे तथा उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

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