महाभारत: इस कारण तीरों की शैया पर भीष्म को पड़ा था सोना, कर्म कभी नहीं छोड़ते पीछा

जीवन में कभी भी बुरे कर्म न करें अन्यथा किसी न किसी जन्म में कर्मफल भुगतना पड़ेगा. सद्कर्म करें. इसके उदाहरण स्वयं भीष्म पितामह हैं. उनका निर्दाेष जीवन भी उन्हें नहीं बचा सका.
कथा के अनुसार भीष्म महाभारत के धर्मयुद्ध में पराजित होते हैं. कौरव और पाँडव उन्हें युद्धोपरांत सुविधा देना चाहते हैं. लेकिन भीष्म अर्जुन को आदेश देते हैं कि उन्हें शरशय्या पर टिके रहने दें बल्कि उनका सिर जो लटक रहा है. उसे भी बांणों के ऊपर टिका दंे. कर्मवाद का सिद्धांत कहता है कि कर्म किया है तो उसके परिणाम भोगने पड़ते हैं. अगर प्रतिकार या विरोध करेंगे तो उसे फिर भोगना पड़ेगा. विशेषतः जैन धर्म में दुःख को आपकी ही चिट्ठियाँ माना जाता है. इन्हें आपने ही कभी स्वयं के नाम डाला था, जो अब प्राप्त हो रही हैं. कथा के अनुसार राजा कृष्ण भीष्म से मिलने उनकी शरशय्या पर पहुंचते हैं. उस समय भीष्म कहते हैं कि श्रीकृष्ण मैंने आप-पास के जन्मों का अवलोकन कर लिया लेकिन मैंने ऐसा कोई पाप नहीं किया है जिसके कारण मुझे इतनी भीषण पीड़ा से गुजरना पड़े. तुम बताओ कि मेरा अपराध क्या है. भीष्म के इस तरह पूछने पर कृष्ण बताते है पितामह यह आपके हजार जन्म पूर्व के किए पाप का परिणाम है. जब आप किसी देश के राजा थे. आपने आपके ऱथ के सामने आने वाले सांप को बाँण से उछाल कर झाड़ियों में फेंक दिया था. वह झाड़ी कटीली थी जिसमें उस साँप का शरीर पूरी तरह बिध गया था. उसी पाप के कारण आज आप इस तरह महाभारत की रणभूमि में शरशय्या पर बिधे पड़े हैं.
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