मोहिनी एकादशी पर अभी से नोट कर लें पारण का समय और इसकी विधि

एकादशी व्रत की तरह ही उसका सही तरीके से पारण करना भी जरूरी माना गया है तभी आपको उसका पूरा फल मिल सकता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आप किस तरह मोहिनी एकादशी व्रत का पारण कर सकते हैं ताकि आपको भगवान विष्णु और माता की असीम कृपा कि प्राप्ति हो सके।

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi 2025) के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि अगर एकादशी व्रत का पारण सही तरीके से किया जाए, तो साधक को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।

मोहिनी एकादशी मुहूर्त
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। उदयातिथि में मोहिनी एकादशी का व्रत गुरुवार 8 मई को किया जाएगा। मोहिनी व्रत के पारण का समय कुछ इस प्रकार रहेगा –

पारण का समय – 9 मई प्रातः 5 बजकर 34 मिनट से सुबह 8 बजकर 16 मिनट तक

एकादशी व्रत पारण विधि (Ekadashi Vrat Parana vidhi)
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद किया जाता है। व्रत का पारण करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो और सूर्य देव को जल अर्पित करें।

इसके बाद भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करें फिर विधिवत रूप से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद अपने मुंह में तुलसी का पत्ता रखकर एकादशी व्रत का पारण करें। इस बात का खासतौर से ध्यान रखें कि पारण के दिन केवल सात्विक भोजन ही खाना चाहिए।

इन नियमों का रखें ख्याल
एकादशी व्रत के पारण के दौरान मूली, बैंगन, साग, मसूर दाल, लहसुन-प्याज आदि का सेवन करना वर्जित माना जाता है। साथ ही इस दिन पर अपनी क्षमता के अनुसार, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। साथ ही किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर अपने व्रत का पारण करना भी शुभ फलदायी माना जाता है।

विष्णु जी के मंत्र (Lord Vishnu Mantra)
ॐ नमोः नारायणाय॥
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र –
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुडध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।

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