भगवान विष्णु की चाल या राजा बलि की मूर्खता? आखिर कैसे फूटी दैत्य गुरु शुक्राचार्य की आंख

शुक्राचार्य, महर्षि भृगु और हिरण्यकश्यपु की पुत्री दिव्या के पुत्र थे। उनके पास “संजीवनी विद्या” थी, जिससे वह किसी भी मृत को जीवित कर सकते थे। इसी विद्या के चलते वह आगे चलकर वह दैत्यों के गुरु बन गए। वह दानवीर राजा बलि के भी गुरु थे। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि को अपने गुरु की बात न मानने की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। चलिए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा।

गुरु के आदेश पर किया यज्ञ का आयोजन
भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी कथा मुख्य रूप से श्रीमद्भागवत पुराण (मुख्यतः स्कंध 8), वामन पुराण, और पद्म पुराण (उत्तर खंड) में मिलती है। कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज राजा बलि, जो अपनी दानवीरता के लिए जाने जाते थे, उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर एक महान यज्ञ का आयोजन किया। तब वामन भगवान, जो प्रभु श्रीहरि का पांचवा अवतार थे, वह भी यज्ञ में पहुंचे।

वामन भगवान ने मांगा ये दान
वामन भगवान ने राजा बलि से कहा कि “हे राजन, मुझे केवल तीन पग भूमि दान में चाहिए”। राजा बलि ने सोचा कि तीन पग धरती दान देना कौन-सी बड़ी बात है, लेकिन शुक्राचार्य समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है औप उन्होंने राजा बलि को सावधान भी किया। लेकिन राजा बलि ने अपने गुरु की बात न मानते हुए दान का संकल्प करने के लिए अपना कमंडल हाथ में लिया।

कमंडल में बैठ गए शुक्राचार्य
शुक्राचार्य कमंडल के मुख में बैठ गए, ताकि राजा दान का संकल्प न कर सकें। इस कारण संकल्प के दौरान जल बाहर नहीं आया। तब वामन भगवान शुक्राचार्य की इस चाल को समझ गए और उन्होंने कमंडल के मुख में एक सींक डाल दी, जो सीधा शुक्राचार्य की आंख में जाकर लगी। इस कारण शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। तभी से वह एकाक्ष कहलाने लगे।

राजा बलि को चुकानी पड़ी ये कीमत
वामन भगवान ने एक विशाल रूप धारण किया और दो पग में ही पूरी धरती और ब्रह्माण माप दिए। जब तीसरा पग रखने की बारी आई, तो राजा बलि ने अपना मस्तक आगे कि दिया। राजा की यह दानवीरता को देखकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें पालाक लोक का राजा नियुक्त कर दिया। अपने गुरु की चेतावनी को नजरअंदाज करने पर राजा बलि को अपना सारा साम्राज्य गवान पड़ा था।-

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