आपने नटराज जी की प्रतिमा में भगवान शिव के दाएं पैर के नीचे एक बौने आकार के दानव को दबा हुआ देखा होगा, जिससे संबंधित कथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं। इस राक्षस को एक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है, जो एक खास संकेत भी देता है।
नटराज, भगवान शिव का वह रूप है, जिसमें वह “नृत्य के देवता” के रूप में जाने जाते हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों जैसे भरतनाट्यम आदि में नटराज मुद्रा का विशेष महत्व माना गया है। आज हम आपको भगवान शिव के नटराज स्वरूप से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं।
कहां मिलती है कथा
नटराज रूप में भगवान शिव के पैर के नीचे जो दानव दबा हुआ है, उसका नाम “अप्समार” है, जिसे मुयालका के नाम से भी जाना जाता है। शिव पुराण (shiv puran) में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार अप्समार ने घोर तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई देवता, मनुष्य या राक्षस न मार सके।
इस वरदान की प्राप्ति के बाद अप्समार का अहंकार बहुत बढ़ गया। वह लोगों की बुद्धि और विवेक को निगल जाता था, जिससे वह लोग पाप, मोह और अज्ञान के दलदल में फंस जाते थे। इसी तरह वह देवताओं, ऋषियों और साधकों को भी परेशान करने लगा।
भगवान शिव ने इस तरह किया नियंत्रित
ऐसे में सभी परेशान होकर भगवान शिव की शरण में पहुंचे। ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार, अपस्मार को मारा नहीं जा सकता था, ऐसे में भगवान शिव ने उसे नियंत्रित करने का निर्णय किया। तब भगवान शिव ने आकाश तत्व को अपना मंच बनाकर नटराज रूप में तांडव किया।
इस नृत्य में पांच तत्वों की क्रियाएं यानी सृष्टि, संरक्षण, संहार, तिरोभाव ( Illusion) और चेतना सम्मिलित थी। जब अपस्मार नटराज जी के इस नृत्य में बाधा डालने लगा, तो उन्होंने उसे अपने दाहिने पैर के नीचे कुचल दिया, जिससे वह जीवित तो रहा, लेकिन वश में हो गया, इस प्रकार ब्रह्मांडीय संतुलन बना रहा।
क्या है आध्यात्मिक अर्थ
इस कथा का एक आध्यात्मिक अर्थ भी है, जिसके अनुसार, अप्समार (Apasmara) को अज्ञानता, अहंकार और विस्मृति के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है, जिसे भगवान शिव अपने ब्रह्मांडीय नृत्य से नियंत्रित करते हैं, जो ज्ञान और चेतना की विजय को दर्शाता है।
साथ ही यह इस बात का भी प्रतीक माना गया है कि अज्ञानता को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। ऐसे में बल्कि इसे नियंत्रित रखना आवश्यक है, ताकि ज्ञान का महत्व बना रहे और जीवन में संतुलन रह सके।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।