हिंदू परंपरा में मंदिर में स्थापित घंटा या घंटी बजाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी छिपा है। मान्यता है कि घंटी की ध्वनि ‘ॐ’ के समान कंपन उत्पन्न करती है, जो मन और वातावरण दोनों को शुद्ध करती है। यही कारण है कि मंदिर में प्रवेश करते ही घंटा बजाने की परंपरा को विशेष महत्व दिया गया है। स्कंद पुराण सहित कई शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि घंटी की आवाज से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और देव शक्तियां सक्रिय होती हैं।
इस कार्य में भी कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना जरूरी है। अनजाने में की गई छोटी-सी गलती पूजा के पूर्ण फल में बाधा बन सकती है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि मंदिर का घंटा कब और कैसे बजाना चाहिए।
कब बजाना चाहिए मंदिर का घंटा
शास्त्रों के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी बजाना सबसे शुभ माना जाता है। घंटी की ध्वनि मन को सांसारिक उलझनों से दूर कर एकाग्र बनाती है, जिससे भक्त पूरी श्रद्धा के साथ पूजा कर पाता है। आरती के समय घंटी बजाना भी अत्यंत फलदायी माना गया है, क्योंकि इससे पूजा की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है।
घर के मंदिर में भी सुबह और शाम पूजा आरंभ करने से पहले घंटी बजाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और वातावरण पवित्र बना रहता है। पुराणों में घंटी की ध्वनि को सृष्टि की मूल नाद शक्ति का प्रतीक माना गया है, जो मानसिक अशांति और नकारात्मक विचारों को दूर करती है।
किस समय घंटा नहीं बजाना चाहिए
वास्तु और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर से बाहर निकलते समय घंटी बजाना उचित नहीं माना जाता। प्रवेश के समय घंटी बजाकर देवताओं का आह्वान किया जाता है, लेकिन लौटते समय ऐसा करने से पूजा के दौरान प्राप्त शांति और सकारात्मकता बाधित हो सकती है। इसलिए पूजा के बाद शांत मन से देवताओं को प्रणाम करके बाहर निकलना चाहिए।
घंटी बजाते समय ध्यान रखने योग्य नियम
शास्त्रों के अनुसार घंटी को बार-बार या बहुत देर तक नहीं बजाना चाहिए। सामान्य रूप से 2 से 3 बार पर्याप्त होता है। घर में पूजा करते समय बाएं हाथ से घंटी बजाना चाहिए। रात्रि में तेज आवाज में घंटी बजाने से बचना चाहिए। ध्यान रहे कि घंटी की ध्वनि कुछ क्षण तक गूंजनी चाहिए, जिससे सकारात्मक कंपन उत्पन्न हो।
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