याद रखें कृष्ण का यह गुरुमंत्र, नहीं सताएगा मन को कोई डर

mahabharat-5536333a2daaf_l-300x214मानव मन अनेक कमजोरियों को सहज ही आत्मसात कर लेता है। महान धनुर्धारी अर्जुन ने रणक्षेत्र में अपने आत्मीय जनों को देखकर अपना धनुष धरती पर रख दिया था। ऐसे में कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा,तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:।
 
इसलिए, अर्जुन तू युद्ध के लिए निश्चय कर खड़ा हो जा। अर्जुन ने तो कृष्ण की प्रेरणा से महाभारत के मैदान में अपने धुरंधर शत्रुओं को परास्त कर दिया, लेकिन एक रण हम सबके जीवन में अनवरत चलता है। 
 
अपनी कमजोरियों पर विजय पाने और सपनों को साकार करने की दिशा में सामने आने वाली चुनौतियों का रण। ऐसे में किसी के प्रति हमारी अगाध आस्था हमें सही मार्ग पर अग्रसर होने में अप्रतिम सहायता करती है। 
 
यह आस्था गुरु, मित्र, बुजुर्ग या उपासना पद्धति किसी में भी हो सकती है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि हम अपनी आस्था का केंद्र किसी को भी लालच या भय के कारण नहीं बनाएं। 
 
आस्था का चयन करते समय हमारा सही मार्गदर्शन हमारा मन ही करेगा क्योंकि मन से बेहतर कोई नहीं जानता कि हम जो कर रहे हैं उसके मूल में कारण क्या है। शायद इसीलिए सराह बॉन ने कहा था, आस्था की एक गहरी सांस लो और विश्वास के साथ नए दिन में प्रवेश करो।
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