उत्तराखंड का जिला हरिद्वार वैसे तो कुंभ के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन यहां से नजदीक ही भगवान शिव की ससुराल भी है। जिसका नाम है ‘कनखल’, सतयुग में यहां राजा दक्ष का राज हुआ करता था। भगवान शिव का घर कैलाश है, तो कनखल ससुराल। यह बात हमें पौराणिक कथाओं से पता चलती है।
हरिवंश पुराण में भी कनखल को पुण्य स्थान माना गया है तो मेघदूत में कालिदास ने कनखल का उल्लेख मेघ की अलका-यात्रा के प्रसंग में विस्तार से उल्लेख किया है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्रजापति दक्ष ने कनखल में ही वह यज्ञ किया था, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। जब शिव की पत्नी माता सती ने इस बात का विरोध किया तो दक्ष ने श्न के प्रति अपशब्दों का प्रयोग जिसे सती सहन न कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। कनखल में दक्ष का मंदिर और यज्ञ की प्रतिकृति आज भी देखी जा सकती है। कनखल के विशेष आकर्षण प्रजापति मंदिर, सती कुंड एवं दक्ष महादेव मंदिर हैं।
कनखल के नजदीक गिरी थीं अमृत की बूंद : पौराणिक कथाओं के अनुसार हरिद्वार वह स्थान है जहां अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं, ये बूंदे तब गिरीं थी जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस अमृत कलश को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैंउज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग( इलाहाबाद) जहां वर्तमान में हर 12 वर्ष के बाद कुम्भ मेला लगता है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।