वाल्मीकि रामायण के लंकाकाण्ड में अतिकाय वध का उल्लेख है। दरअसल अतिकाय रावण का ही पुत्र था जो उसकी दूसरी पत्नी धन्यमालिनी का बेटा था। जब श्रीराम वानर सेना के साथ लंका युद्ध करने पहुंचे, तब उसने सर्वप्रथम अपने अन्य चार पुत्रों त्रिशिरा, देवान्तक, नरान्तक और अतिकाय को भेजा था।
लंका के दैत्य सेनापतियों और वानर सेना के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में वानर सेना के योद्धा अंगद ने नरान्तक, देवान्तक को मार गिराया। इसी बीच हनुमानजी ने अपनी गदा से दैत्य त्रिशिरा का सिर शरीर से अलग कर दिया।
लंका की सेना अपने हार रही थी। सभी दैत्या मारे जा चुके थे। लेकिन तभी एख विशाल दैत्य ने वानर सेना ने तबाही कर दी। तब श्रीरामचंद्र ने विभीषण से पूछा, ये पराक्रमी दैत्य कौन है। विभीषण बोले, यह रावण का पुत्र है।जिसकी मां धन्यमालिनी है। लेकिन रघुवर आप इसका तुरंत अंत कर दें नहीं तो यह वानर सेना को मार देगा।
तब श्रीराम के पास पहुंचकर अतिकाय उन्हें भला-बुरा कहने लगा। कुछ देर तक तो श्रीराम उसकी बातों को सुनते रहे। लेकिन लक्ष्मण अतिकाय की बातों से क्रोधित हो गए। उन्होंने अर्द्धचन्द्राकार बाण से अतिकाय का सिर काट दिया। इस तरह रावण के पुत्र अतिकाय का अंत हो गया।