अयोध्या में जहां रामलला मंदिर निर्माण की बाट जोह रहे हैं वहीं रायपुर से 30 किलोमीटर दूर अपने ननिहाल में भगवान राम पिछले 21 वर्षों से ताले में बंद हैं. दरअसल दो परिवारों के बीच आधिपत्य को लेकर चल रही लड़ाई के कारण यहां भगवान राम के मंदिर में ताला लगा हुआ है. दक्षिण कोसल की राजधानी आरंग के समीप लगभग चार हजार की आबादी वाले गांव चंदखुरी को अयोध्या के राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या का जन्मस्थल माना जाता है.
एक समय 126 तालाब वाले इस गांव में जलसेन नामक जलाशय के मध्य टापू में कौशल्या माता का मंदिर है, जहां कौशल्या की गोद में भगवान राम विराजमान हैं. विश्व में कौशल्या माता का यह एकमात्र मंदिर है. माता कौशल्या का मायका होने के कारण इस गांव को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है. गांव के मध्य में भगवान राम का मंदिर है जो पिछले 21 वर्षों से बंद है. इसकी वजह यहां दो परिवारों के बीच मंदिर के मालिकाना हक को लेकर चल रहा विवाद है.
मंदिर के प्रांगण में बने घर में निवास करने वाले शर्मा परिवार की मुखिया और गांव की सरपंच इंदु शर्मा के मुताबिक मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पूर्व कराया गया था. जब सीताराम स्वामी नायडू चंदखुरी गांव के मालगुजार थे तब उन्होंने वर्ष 1952 में आयुर्वेदिक डाक्टर के रूप में यहां आए नरसिंह प्रसाद उपाध्याय को मंदिर की सेवा में नियुक्त किया और मंदिर की लगभग 28 एकड़ जमीन की जिम्मेदारी सौंपी. इसके कुछ समय बाद नायडू की मृत्यु हो गयी.
इंदु शर्मा ने बताया कि जब मई वर्ष 1997 में उनके श्वसुर तथा मंदिर के पुजारी नरसिंह प्रसाद उपाध्याय की मृत्यु हुई तब अगस्त में यहां के प्रतिष्ठित बैस परिवार ने इस मंदिर और जमीन पर दावा किया और मंदिर में कथित रूप से ताला लगा दिया. तब से यह मंदिर बंद है. उन्होंने बताया कि तब से लेकर अब तक इस मंदिर के हक के लिए दोनों परिवारों के मध्य लड़ाई चल रही है.
सरपंच इंदु शर्मा चाहती हैं कि मंदिर का द्वार खोल दिया जाए जिससे गांव के लोग दर्शन कर सकें. इधर मंदिर को लेकर बैस परिवार का अलग दावा है. बैस परिवार के महेश बैस कहते हैं कि गांव में जब नायडू परिवार की मालगुजारी थी तब बैस परिवार ने उनकी पूरी जमीन खरीदी ली थी. जिसके साथ ही यह मंदिर भी बैस परिवार के हिस्से में आ गया. मंदिर लगभग तीन सौ साल पुराना है तथा मालगुजार नायडू ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1915 में कराया था. बैस परिवार के सदस्य श्याम बैस कहते हैं कि उनके परिवार के पास मंदिर आने के बाद भी पुजारी उपाध्याय का परिवार इस मंदिर में पूजा अर्चना करता था. लेकिन पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर में पूजा बंद हो गयी.
मंदिर भी रख रखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गया और किसी अनहोनी से बचने के लिए मंदिर को बंद करना पड़ा. मंदिर की जमीन भगवान राम के नाम पर है. बैस कहते हैं कि उनके परिवार ने मंदिर का नया नक्शा बना लिया है तथा जल्द ही जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया जाएगा जिससे मंदिर फिर से खुल सके. राज्य के पुरातत्वविद डाक्टर हेमु यदु कहते हैं कि मंदिर के गुंबद को देखते हुए लगता है कि मंदिर का निर्माण 17 वीं से 18 वीं शताब्दी के मध्य में कराया गया था. इस मंदिर का निर्माण गांव में बने कौशल्या माता के मंदिर के बाद हुआ है. कौशल्या माता के मंदिर की स्थापत्य कला की दृष्टि से इसके निर्माण का समय छठवीं शताब्दी माना जा सकता है.
यदु कहते हैं कि छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल कहा जाता है और रामायण काल में दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत का राज्य था. जिनकी पुत्री भानुमति (कौशल्या) थी. दक्षिण कोसल की राजधानी आरंग नगरी थी तथा चंदखुरी का नाम पहले चंद्रपुरी था जहां माता कौशल्या का जन्म हुआ था. पुरातत्वविद कहते हैं कि चूंकि छत्तीसगढ़ श्रीराम का ननिहाल है इसलिए राम छत्तीसगढ़ वासियों के भांजे हुए. यही कारण है कि यहां के निवासी अपने भांजे में भगवान राम की छवि देखते हैं, तथा यहां भांजे का पैर छूने का रिवाज है.